दो कजरारी आंखे
झपकते हुए ,
मैं अक्सर
तुम्हारी तस्वीर में
अपने रंग खोजती हूँ ...
वे रंग
जो कभी मैंने
तुम्हें दिए थे ,
उनका क्या हुआ ...!
सागर की सी
गहराई लिए दो आँखे ,
एक टक देखते हुए ...
हाँ वो रंग,
अभी भी मेरे पास है और
बहुत प्रिय भी ...
पर
वे रंग चाह कर भी मैं ,
मेरे जीवन के केनवास
पर नहीं उतार पाता...
उन रंगों को
मैंने
नज़रों में बसा कर
रखा है ...
जब भी आइना
देखता हूँ
तुम्हारा अक्स ढूंढ़ता हूँ ...
कजरारी आँखें
बरस पड़ी ,
सागर सी गहराई वाली
आँखों की गहराई
कुछ और गहरी हो गयी ....
एक दूसरे के रंगो को संभाले रखना पर रंग होते हुए भी कॅनव्हास पर न उतारना, मन का अप्रकटिकरण है। और प्रेम की सार्थकता व्यक्त होने में नहीं तो अव्यक्त रहने में ही है। ऐसी ही स्थितियों का वर्णन आपकी कविता करती है।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद विजय जी
Deleteप्रेम का रंग फीका पड़ना ,आंसू छलकने का कारण बनता दिखाई दे रहा है
ReplyDeletelatest post वासन्ती दुर्गा पूजा
LATEST POSTसपना और तुम
हार्दिक धन्यवाद कालिपद जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में भी प्रध्रारो
http://nimbijodhan.blogspot.in/
हार्दिक धन्यवाद गजेन्द्र जी
Deleteवाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | आभार
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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हार्दिक धन्यवाद तुषार राज जी
Deleteअंतस को छूती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कैलाश शर्मा जी
Deleteबहुत बढ़िया मन को छूती प्रस्तुति,आभार उपासना जी,,,
ReplyDeleteRecent Post : अमन के लिए.
हार्दिक धन्यवाद धीरेन्द्र जी
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संगीता जी
Deleteहाँ वो रंग, अभी भी मेरे पास हैं और बहुत प्रिय भी
ReplyDeleteपर वो रंग चाह कर भी मेरे जीवन के कनवास पर नहीं उतार पाता ....
अव्यक्त रह गए भावों के व्यक्त कर देने की छटपटहाट शब्दों का रूप ले आपकी कविताओं मे ढलती दिखती हैं .......
सच कहा आपने कि कभी कभी, कहीं कहीं जीवन के केनवास का Background उन सुंदर रंगो से इतना बे मेल होता है कि वो सुंदर रंग चाह कर भी जीवन के केनवास पर नहीं उतारे जा सकते .......
बस दिल जिंदगी के आईने मे उनका अक्स ही ढूँढता रहता है !
अन्य के दृष्टिकोण/भाव को भी अपनी कविता मे कह देने की आपकी काबलियत कबीले तारीफ है ....
जी हाँ ,यह मुझमे यह एक बुराई ही है कि बिन कहे दूसरों कि बात समझ जाती हूँ ...हालाँकि कई बार देर हो जाती है .....सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद
Deleteहालांकि कई बार हो जाने वाली ये देरी कारण साबित होती है कुछ का कुछ हो जाने के लिए......
Deleteकुछ हो जाने या कुछ न हो पाने के कारण जो ध्रुवीकरण का वातावरण जन्म लेता है वही तो उर्वरक माध्यम है काव्य की अभिव्यक्ति के लिए ....... जो लगता है आपको प्राप्त है.......
:-)
हार्दिक धन्यवाद जी आपके अनमोल वचनों के लिए ...
Deleteबहुत उम्दा .
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मदन मोहन जी
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