Friday 12 April 2013

मैं अक्सर तुम्हारी तस्वीर में अपने रंग खोजती हूँ ...


दो कजरारी आंखे
 झपकते हुए ,
मैं अक्सर 
तुम्हारी तस्वीर में
अपने रंग  खोजती हूँ ...
वे रंग 
जो  कभी मैंने 
तुम्हें दिए थे ,
उनका क्या हुआ ...!
सागर की सी 
गहराई लिए दो आँखे ,
एक टक देखते हुए ...
हाँ वो रंग,
 अभी भी मेरे पास है और 
बहुत प्रिय भी ...
 पर 
वे  रंग चाह कर भी मैं ,
मेरे जीवन के केनवास 
पर नहीं उतार पाता...
उन रंगों को
 मैंने 
नज़रों में बसा कर 
 रखा है ...
जब भी आइना
 देखता हूँ 
तुम्हारा अक्स ढूंढ़ता  हूँ ...
कजरारी आँखें 
बरस पड़ी ,
सागर सी गहराई वाली 
आँखों की गहराई
 कुछ और गहरी हो गयी ....

20 comments:

  1. एक दूसरे के रंगो को संभाले रखना पर रंग होते हुए भी कॅनव्हास पर न उतारना, मन का अप्रकटिकरण है। और प्रेम की सार्थकता व्यक्त होने में नहीं तो अव्यक्त रहने में ही है। ऐसी ही स्थितियों का वर्णन आपकी कविता करती है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विजय जी

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  2. प्रेम का रंग फीका पड़ना ,आंसू छलकने का कारण बनता दिखाई दे रहा है
    latest post वासन्ती दुर्गा पूजा
    LATEST POSTसपना और तुम

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    1. हार्दिक धन्यवाद कालिपद जी

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  3. सुन्दर रचना
    मेरे ब्लॉग में भी प्रध्रारो
    http://nimbijodhan.blogspot.in/

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    1. हार्दिक धन्यवाद गजेन्द्र जी

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  4. वाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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    1. हार्दिक धन्यवाद तुषार राज जी

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  5. अंतस को छूती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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    1. हार्दिक धन्यवाद कैलाश शर्मा जी

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  6. बहुत बढ़िया मन को छूती प्रस्तुति,आभार उपासना जी,,,

    Recent Post : अमन के लिए.

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    1. हार्दिक धन्यवाद धीरेन्द्र जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद संगीता जी

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  8. हाँ वो रंग, अभी भी मेरे पास हैं और बहुत प्रिय भी
    पर वो रंग चाह कर भी मेरे जीवन के कनवास पर नहीं उतार पाता ....

    अव्यक्त रह गए भावों के व्यक्त कर देने की छटपटहाट शब्दों का रूप ले आपकी कविताओं मे ढलती दिखती हैं .......

    सच कहा आपने कि कभी कभी, कहीं कहीं जीवन के केनवास का Background उन सुंदर रंगो से इतना बे मेल होता है कि वो सुंदर रंग चाह कर भी जीवन के केनवास पर नहीं उतारे जा सकते .......
    बस दिल जिंदगी के आईने मे उनका अक्स ही ढूँढता रहता है !

    अन्य के दृष्टिकोण/भाव को भी अपनी कविता मे कह देने की आपकी काबलियत कबीले तारीफ है ....

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    1. जी हाँ ,यह मुझमे यह एक बुराई ही है कि बिन कहे दूसरों कि बात समझ जाती हूँ ...हालाँकि कई बार देर हो जाती है .....सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद

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    2. हालांकि कई बार हो जाने वाली ये देरी कारण साबित होती है कुछ का कुछ हो जाने के लिए......
      कुछ हो जाने या कुछ न हो पाने के कारण जो ध्रुवीकरण का वातावरण जन्म लेता है वही तो उर्वरक माध्यम है काव्य की अभिव्यक्ति के लिए ....... जो लगता है आपको प्राप्त है.......
      :-)

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    3. हार्दिक धन्यवाद जी आपके अनमोल वचनों के लिए ...

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  9. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद मदन मोहन जी

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