Wednesday, 10 April 2013

पर मैं अगले जनम में चिड़िया बनना चाहती हूँ .......



उसने धीमे कहा 
क्या अगले जनम में भी 
साथ निभाओगी ...

हाँ शायद !
पर मैं  अगले जनम में
 चिड़िया बनना
चाहती हूँ ,
वो कुछ सोचते हुए बोली ...

इस सुनहरे पिंजरे से 
दूर उन्मुक्त
गगन में उड़ना 
चाहूंगी ...

तुम मुझे कैसे 
पहचानोगे तब ...!

हाँ पहचान लूँगा 
मैं ...!
इस सुनहरे पिंजरे की
आभा  से ,
तुम्हारे परों पर
 तब भी होगी
और
तुम्हारी आवाज़ से  ,
जो अभी भी चिड़िया
 की तरह ही है ...

जब मैं  हाथ बढाऊँ 
तुम मेरी हथेली पर आ
बैठना 
उसने अपनी आँखों की
चमक बढ़ाते हुए 
धीरे से फिर कहा ...

13 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव का एहसास,बेहतरीन आभार,आभार.

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    1. हार्दिक धन्यवाद राजेन्द्र कुमार जी

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए आभार!

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    1. हार्दिक धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी

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  3. चिडिया आजादी का प्रतिक है। प्रकृति ने जैसे भैजा वैसे ही उसका रहना और पूरा संसार उसका घरौंदा बनना उसका अधिकार है। मन की आजादी की कल्पना चिडिया रूप धारण कर उतर रही है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद विजय जी

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  4. बहुत प्रभावी उम्दा प्रस्तुति !!! आभार

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    1. हार्दिक धन्यवाद धीरेन्द्र सिंह जी

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  5. हाँ ...

    जब मैं हाथ बढ़ाऊँ
    तुम मेरी हथेली पर
    आ बैठना .......


    :')

    बहुत सुंदर ....

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    1. हार्दिक धन्यवाद जी

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  6. अगाध विश्वास की अनकही कहानी

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    1. हार्दिक धन्यवाद रमाकांत सिंह जी

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  7. बहुत सुन्दर और कोमल अहसास...

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