तुमने कहा
जैसे मैं तुम्हे देखती हूँ
तुम वैसे ही हो ...
लेकिन
जैसे मैं देखती हूँ
वैसे तुम कहाँ हो अब ...
समय बदल जाता है
मौसम बदल जाते है
दिन भी तो
एक जैसे कहाँ रहते हैं ...
एक दिन में भी तो कई
प्रहर होते हैं
हर प्रहर का भी तो
मौसम होता है
तासीर होती है ...
फिर तुम वैसे ही कैसे
रह सकते हो
जैसा मैं देखना चाहती हूँ ...
मौसम की तरह तुम भी
बदले हो
नज़र ना बदली हो चाहे
नजरिया बदल कर
नज़रें तो फेर ही ली तुमने ....
समय का फेर ही कहोगे तुम
इसे
मैं कहूँगी तुम्हारे मन का फेर ,
लेकिन इसे ...
फिर तुम कैसे कह सकते हो
जैसे मैं देखती हूँ
तुम वैसे ही हो ...
जैसे मैं तुम्हे देखती हूँ
तुम वैसे ही हो ...
लेकिन
जैसे मैं देखती हूँ
वैसे तुम कहाँ हो अब ...
समय बदल जाता है
मौसम बदल जाते है
दिन भी तो
एक जैसे कहाँ रहते हैं ...
एक दिन में भी तो कई
प्रहर होते हैं
हर प्रहर का भी तो
मौसम होता है
तासीर होती है ...
फिर तुम वैसे ही कैसे
रह सकते हो
जैसा मैं देखना चाहती हूँ ...
मौसम की तरह तुम भी
बदले हो
नज़र ना बदली हो चाहे
नजरिया बदल कर
नज़रें तो फेर ही ली तुमने ....
समय का फेर ही कहोगे तुम
इसे
मैं कहूँगी तुम्हारे मन का फेर ,
लेकिन इसे ...
फिर तुम कैसे कह सकते हो
जैसे मैं देखती हूँ
तुम वैसे ही हो ...
badlav to hota hai par aatma vahi rahti hai ...............bahut sundar rachna
ReplyDeleteहार्दिक आभार संध्या जी
Deletebahut khOOB LIKHA
ReplyDeleteहार्दिक आभार नीलिमा जी
DeleteExcellent-***
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदित्य जी
Delete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
LATEST POSTसपना और तुम
हार्दिक आभार कालिपद जी
Deleteबहुत ही बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteहार्दिक आभार राजेन्द्र कुमार जी
Deleteउलहना देती हुई ये
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना घढ़ी है आपने !
नज़रें न बदली हो चाहे
नज़रिया बदल कर
नज़रें फेर ली तुमने ......
कहो भले ही कि तुम्हारे मन के फेर है.....
पर मानो यही कि
समय का फेर है ....
बहुत खूब
" जी "
हार्दिक आभार जी ......
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार राजेश कुमारी जी
Deleteसफल, सार्थक और मर्मस्पर्शी कविता। सच में आपकी कलम और वाणी में अद्भुत ताकत है। भीतरी दर्द और शिकायत को सदे हुए शब्दों में व्यक्त किया है। सामने वाले के हृदय में परिवर्तन क्षमता कविता में है। बस परवर्तन हो।
ReplyDeletedrvtshinde.blogspot.com
हार्दिक आभार विजय शिंदे जी
Deleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति...........
ReplyDeleteहार्दिक आभार अरुण कुमार जी
Deletekyaa khoob aaklan kiya hai aur sach bhi kah diya hai
ReplyDeleteहार्दिक आभार वंदना जी
Deleteहार्दिक आभार कुलदीप जी
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबदलाव तो अवश्यम्भावी है....
अनु
बदलाव प्रकृति का नियम है ...भला इससे कौन अछूता रह पाता है ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति
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