Monday, 29 April 2013

पर तुम एक आभास ही तो हो ...


तुमको याद करना

 तुमको ढूँढना ,

हर आहट पर पलट

 कर देखना के तुम

 आ रहे हो शायद ...


पर तुम ,तुम 

तो हो ही नहीं

 एक आभास 

ही तो हो ...


मुझे यूँ भी लगता है
 ,
एक दिन तुम आओगे

 और मेरे कंधे पर धीरे 

 हाथ रखोगे

 मैं पलट कर देखूंगी ,

तुम्हे अपने सामने

 ही पाऊँगी...


मैं इसी आभास 

मैं ही रहती हूँ

 और गुम रहना भी

 चाहती हूँ ...

( चित्र गूगल से साभार )

26 comments:

  1. उम्मीद जगाये रखियेगा
    जरुर एक दिन वो आयेगा
    आमीन !

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार विभा जी

      Delete
  2. हृदयस्पर्शी..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अमृता जी

      Delete
  3. मैं इसी आभास में रहती हूँ .........बहुत अच्छा !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार कालिपद जी

      Delete
  4. बहुत ही सुन्दर एहसास जिसमे हम जी लेते हैं

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार रमाकांत सिंह जी

      Delete
  5. बहुत सुन्दर अहसास..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार महेश्वरी कनेरी जी

      Delete
  6. बहुत सुन्दर |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार तुषार राज जी

      Delete
  7. भावनाओं कि खूबसूरत अभिव्यक्ति! बधाइयाँ इस रचना के लिए!

    -Abhijit (Reflections)

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अभिजित जी

      Delete
  8. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार राजेन्द्र जी

      Delete
  9. हृदयस्पर्शी रचना..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार साकेत जी

      Delete
  10. खूबसूरत अभिव्यक्ति उपासना जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अरुणा जी

      Delete
  11. एक अनाम इंतजार का प्रकटण। बार-बार आहटों से लगना की वह आया है पर असल में नहीं आना इंतजार करने वाले के आंखों में दुःख बढा देता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार विजय जी

      Delete
  12. सुंदर अभिव्यक्ति .....

    आभास की अवस्था हमेशा एहसास के साथ ही होती है, जबकि सामने सच के होने पर हो सकता है एहसास जैसा भाव न हो .......
    इसलिए आभास (Subjectivity), तथ्य/सत्य (Objectivity) से ऊपर ही है ......और ये पंक्ति कि "मैं इसी आभास मे ही रहती हूँ ...... " एक बेहतर अवस्था कही जा सकती है ......

    आपकी कल्पना क्षमता की तारीफ करनी पड़ेगी !

    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुछ समझ आया कुछ नहीं आया लेकिन फिर भी आपकी बात अच्छी लगी ..अमुल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार जी

      Delete
  13. हार्दिक आभार रूप चन्द्र शास्त्री जी

    ReplyDelete
  14. हार्दिक आभार धीरेन्द्र जी

    ReplyDelete