जब कोई सुनने वाला न हो
मन की बात ,
और रह जाये
मन की मन ही में ...
खुद से खुद की ही
बात करते रहे ,
और सुनते रहे
खुद ही को ....
दबाते रहें अपने
मन की बातों को ,
भर -भर के ठंडी
सांसों से ........
भर दे मन को एक गहरी
सीलन से ,
मार दे अपने
मन की आवाज़ को ...
तो ये मन कब्रिस्तान ही
बन जाता है ...
( पगडण्डीयां में प्रकाशित )
( चित्र गूगल से साभार )
ReplyDeletey meri khamoshi bhi azeeb shay hai !!!!!!! mere lafz utar aay prashn bankar teri aankho mai.......NEELIMA
SUPERB
बहुत शुक्रिया नीलिमा जी
DeleteBahut khoob upasnaji
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया सरस जी
Deleteबहुत सुन्दर शब्दों में सच कहा आपने ......................
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया अरुणा जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना ............ये मन ही तो हमारा सच्चा साथी है
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया संध्या जी
Deleteबेहतरीन रचना | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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बहुत शुक्रिया तुषार राज जी
Deleteवाह ....... बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया सदा जी
Deleteबहुत शुक्रिया वंदना जी
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया अरुण जी
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया रूपचन्द्र शास्त्री जी
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया जी
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