एक देश में एक राजा
गूंगा गुड्डा सा ,
नहीं चल सकता बिन सहारे
चलता भी तो कठपुतली सा ,
न मर्ज़ी से गर्दन घुमाता
बोल भी कहाँ पाता
मर्ज़ी से अपनी ....
जैसा राजा होगा ,
होगी प्रजा भी तो वैसी ही ,
दोष किस्मत को या
नियति को ...
नियति को ...!
तो क्यूँ दे नियति को दोष ,
दोष किस्मत को भी
क्यूँ दे हम ...
प्रजा ने जब ऐसी ही
नियति पायी हो
तो किस्मत में भी
तो वही पायेगी जो बोया है ...
ऐसे राजा के राज को
क्या कहिये ...!
अंधेर नगरी , चौपट राजा ...
ऐसे राज में प्रजा में भी कैसी
चहुँ ओर फैली
अराजकता ,
दिशाहीन सी भटकती ,
दर -दर न्याय के लिए
लताड़ी जाती हर जगह से ...
लिए मरा मनोबल
प्रजा भी
फिरती बस लाशों की
तरह ...
गर्म धरा पर बूंद उछल
कर मिट जाती क्षण में ,
कुछ ऐसे ही
प्रजा का जोश भी मिट जाता ...
देखती एक दूसरे को शक से
केवल शोर मचाती
ढोल बजाती
आक्षेप लगाती हर किसी
दूसरे पर ....
नहीं देखा कभी झाँक कर
अपने अंतर्मन में
तलाशती बाहर रोशनी
भीतर लिए खुद के अँधेरा ...
दोषी कौन है ?
क्या राजा
या प्रजा भी ,
दोनों ही दोषी और
दोनों ही ना माने ...
ना माने अगर दोष अपना
टूटेंगी फिर
ऐसे ही कई गुड़ियाँ
भग्न होती रहेंगी
ऐसे ही प्रतिमाएँ ....
गूंगा गुड्डा सा ,
नहीं चल सकता बिन सहारे
चलता भी तो कठपुतली सा ,
न मर्ज़ी से गर्दन घुमाता
बोल भी कहाँ पाता
मर्ज़ी से अपनी ....
जैसा राजा होगा ,
होगी प्रजा भी तो वैसी ही ,
दोष किस्मत को या
नियति को ...
नियति को ...!
तो क्यूँ दे नियति को दोष ,
दोष किस्मत को भी
क्यूँ दे हम ...
प्रजा ने जब ऐसी ही
नियति पायी हो
तो किस्मत में भी
तो वही पायेगी जो बोया है ...
ऐसे राजा के राज को
क्या कहिये ...!
अंधेर नगरी , चौपट राजा ...
ऐसे राज में प्रजा में भी कैसी
चहुँ ओर फैली
अराजकता ,
दिशाहीन सी भटकती ,
दर -दर न्याय के लिए
लताड़ी जाती हर जगह से ...
लिए मरा मनोबल
प्रजा भी
फिरती बस लाशों की
तरह ...
गर्म धरा पर बूंद उछल
कर मिट जाती क्षण में ,
कुछ ऐसे ही
प्रजा का जोश भी मिट जाता ...
देखती एक दूसरे को शक से
केवल शोर मचाती
ढोल बजाती
आक्षेप लगाती हर किसी
दूसरे पर ....
नहीं देखा कभी झाँक कर
अपने अंतर्मन में
तलाशती बाहर रोशनी
भीतर लिए खुद के अँधेरा ...
दोषी कौन है ?
क्या राजा
या प्रजा भी ,
दोनों ही दोषी और
दोनों ही ना माने ...
ना माने अगर दोष अपना
टूटेंगी फिर
ऐसे ही कई गुड़ियाँ
भग्न होती रहेंगी
ऐसे ही प्रतिमाएँ ....
दोषी कौन है ?
ReplyDeleteक्या राजा
या प्रजा भी ,
दोनों ही दोषी और
दोनों ही ना माने ...
ना माने अगर दोष अपना
टूटेंगी फिर
ऐसे ही कई गुड़ियाँ
भग्न होती रहेंगी
ऐसे ही प्रतिमाएँ .... ek kadwa sach
सही प्रहार किया है उपासना सखी ............सटीक ......
ReplyDeleteअंधेर नगरी चौपट राजा,"बे-पनाह अंधेरों को सुबह कैसे कह दूँ ,.....ये एक ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नही
ReplyDelete(दुष्यंत
उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजिम्मेदारी सरकार से हमारी है,हम उसका कितना निर्वहन करते है ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,
सचमुच अंधेर नगरी चौपट राजा .....
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर।
सटीक और सार्थक रचना !!
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति ....शब्दों और मन के भावों की
ReplyDeleteव्यवस्था पे कटाक्ष करती रचना ...
ReplyDeleteयथा राजा तथा प्रजा ....
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति ...
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteBahut hi Sachhi Abhivyakti.....
ReplyDeletevery nice post with great emotions
ReplyDeleteचाहे केंद्र की हो चाहे राज्य की सरकारें अपनी गोटियां जमाने में ही व्यस्त है किसी गुडिया को भग्न किया है और नग्न किया है उसे कोई लेना-देना नहीं। बस उन्हें चिंता है राजनीतिक भविष्य की। पर ध्यान देनेवाली बात है गुडिया और गुड्डा भी सरकारी है नहीं सरकार को पीडा, दुःख और चिंता नहीं होगी; असल चिंता और सुरक्षा करेंगे उनके माता-पिता तथा परिवार जन। बाकी कुछ नहीं, भलाई इसी में है कि अपनी सुरक्षा खुद करें। सरकारों, प्रशासन और पुलिस पर निर्भर रहेंगे तो हमें अपने घोडे बेचने पडेंगे। पैनी नजर की जरूरत है जो परिवार का सुरक्षा घेरा बनेगी।
ReplyDelete
ReplyDeleteसशक्त रचना, गहरे तक उतरती हुई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?