आज तुम नहीं हो .......
आज तुम नहीं हो तो
क्या सूरज नहीं निकला
,
पर उसमे वो चमक ही कहाँ ..........
आज तुम नहीं हो तो
क्या फूल नहीं खिला
,
पर उसमे वो महक ही कहाँ ........
जब तुम नहीं हो तो सब हो
कर भी कुछ नहीं होता
......
ना सूरज में चमक ना हवाओं
में महक और आज तुम नहीं
हो तो मेरी आँखों में भी वो
नूर कहाँ .................
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार (05-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!
हार्दिक धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी
Deleteभावनाओं की गहन अनुभूति से उपजी व्यथा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अज़ीज़ जौनपुरी
DeleteBhavnao se otprot Kavita...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मंजुल सखी
Deleteहमारा मन अगर दुःखी है तो सारी दुनिया के भीतर की खुशी खत्म हो गई है ऐसे लगता है। बात सच भी अपने अपनों के पास न हो तो दुःख होगा ही। और वह 'तुम' अपना प्रेमी आत्मीय हो तो आंखों का नूर तो गायब ही होगा। वहां सूरज, हवा, पानी, खाना, फूल, महक, चमक... कोई मायने नहीं रखता।
ReplyDeleteडॉ.विजय शिंदे
drvtshinde.blogspot.com
हार्दिक धन्यवाद विजय शिंदे जी
Deleteएक अभाव सब पर अपनी छाया डाल देता है जब,सब फीका लगता है!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रतिभा जी
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति ||
ReplyDeleteआभार आदरेया -
हार्दिक धन्यवाद रविकर जी
Deleteअगर तुम नहीं हो तो सब कुछ है बस उस में हम नहीं हैं .......................
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रमा सखी
Deleteआपका ये " तुम " तो बहुत बड़ा culprit है !
ReplyDeleteक्रोध भी है उसके प्रति और ऐसे बैरी के लिए प्रेम भी !
प्रस्तुति उत्तम ..... अभिव्यक्ति सुंदर .....
सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद जी ...
Deleteहमारा यह हृदय बहुत छोटा सा होता है इसमें एक ही चीज़ रह सकती है एक समय में , या तो प्रेम ,या क्रोध ही .... थोड़ी सी जिन्दगी मिली है तो क्रोध क्यूँ किया जाय , प्रेम ही क्यूँ नहीं ...न जाने कब यहाँ से रुखसत हो जाये
:-)
Deleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteLATEST POST सुहाने सपने
हार्दिक धन्यवाद कालिपद जी
DeleteADBHUT ANUBHUTI
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद रमाकांत सिंह जी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद जी यशोदा जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteकिसी की कमी के एहसास को बखूबी लिखा है
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