Thursday 4 April 2013

आज तुम नहीं हो .......


आज तुम नहीं हो तो

क्या सूरज नहीं निकला 
,
पर उसमे वो चमक ही कहाँ ..........

आज तुम नहीं हो तो

क्या फूल नहीं खिला 
,
पर उसमे वो महक ही कहाँ ........

जब तुम नहीं हो तो सब हो


कर भी कुछ नहीं होता

 ......
ना सूरज में चमक ना हवाओं


में महक और आज तुम नहीं


हो तो मेरी आँखों में भी वो


नूर कहाँ .................

25 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी पोस्ट का लिंक आज शुक्रवार (05-04-2013) के चर्चा मंच पर भी है!

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    1. हार्दिक धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी

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  2. भावनाओं की गहन अनुभूति से उपजी व्यथा

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    1. हार्दिक धन्यवाद अज़ीज़ जौनपुरी

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    1. हार्दिक धन्यवाद मंजुल सखी

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  4. हमारा मन अगर दुःखी है तो सारी दुनिया के भीतर की खुशी खत्म हो गई है ऐसे लगता है। बात सच भी अपने अपनों के पास न हो तो दुःख होगा ही। और वह 'तुम' अपना प्रेमी आत्मीय हो तो आंखों का नूर तो गायब ही होगा। वहां सूरज, हवा, पानी, खाना, फूल, महक, चमक... कोई मायने नहीं रखता।
    डॉ.विजय शिंदे
    drvtshinde.blogspot.com

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    1. हार्दिक धन्यवाद विजय शिंदे जी

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  5. एक अभाव सब पर अपनी छाया डाल देता है जब,सब फीका लगता है!

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रतिभा जी

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति ||
    आभार आदरेया -

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    1. हार्दिक धन्यवाद रविकर जी

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  7. अगर तुम नहीं हो तो सब कुछ है बस उस में हम नहीं हैं .......................

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    1. हार्दिक धन्यवाद रमा सखी

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  8. आपका ये " तुम " तो बहुत बड़ा culprit है !

    क्रोध भी है उसके प्रति और ऐसे बैरी के लिए प्रेम भी !



    प्रस्तुति उत्तम ..... अभिव्यक्ति सुंदर .....


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    1. सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद जी ...
      हमारा यह हृदय बहुत छोटा सा होता है इसमें एक ही चीज़ रह सकती है एक समय में , या तो प्रेम ,या क्रोध ही .... थोड़ी सी जिन्दगी मिली है तो क्रोध क्यूँ किया जाय , प्रेम ही क्यूँ नहीं ...न जाने कब यहाँ से रुखसत हो जाये

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    1. हार्दिक धन्यवाद कालिपद जी

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  10. हार्दिक धन्यवाद रमाकांत सिंह जी

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  11. हार्दिक धन्यवाद जी यशोदा जी

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  12. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

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  13. सुन्दर रचना सखी

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  14. किसी की कमी के एहसास को बखूबी लिखा है

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