जीवन की ढलती संध्या
देख गहराता अँधेरा
बाहर कम भीतर अधिक
अब एक तुझे ही पुकारता मन...
हे प्रभु ....!
तेरे इस असार -संसार में
हमने कुछ न किया
,ना तुझे याद किया ,
न ही प्राणी मात्र के लिए
ना ही प्रयास किया
मानवता को बचाने का....
बस किया तो यही एक काम
,बाँट दिया एक इन्सान को
दूसरे से....
अब जीवन की ढलती सांझ में
साल रहा है बस यही भय
क्या मुहं ले कर आऊं पास तेरे....
अब तो यही अरदास है
हे प्रभु ...!
दे दो मुझको
बस एक ही मौका ,
तेरी हर कसौटी पर
खरा उतर के मैं दिखलाऊं ....
( चित्र गूगल से साभार )
देख गहराता अँधेरा
बाहर कम भीतर अधिक
अब एक तुझे ही पुकारता मन...
हे प्रभु ....!
तेरे इस असार -संसार में
हमने कुछ न किया
,ना तुझे याद किया ,
न ही प्राणी मात्र के लिए
ना ही प्रयास किया
मानवता को बचाने का....
बस किया तो यही एक काम
,बाँट दिया एक इन्सान को
दूसरे से....
अब जीवन की ढलती सांझ में
साल रहा है बस यही भय
क्या मुहं ले कर आऊं पास तेरे....
अब तो यही अरदास है
हे प्रभु ...!
दे दो मुझको
बस एक ही मौका ,
तेरी हर कसौटी पर
खरा उतर के मैं दिखलाऊं ....
( चित्र गूगल से साभार )
अरदास कबूल हो ... सुंदर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया संगीता जी
Deleteईश्वर, प्रकृति द्वारा प्राप्त जीवन उपहार है और सही जगह पर सही कामों में समय रहते लगाना जरूर है। इस दुनिया के भीतर का अस्तित्व जब खत्म होते आता है तब मन में अपराध भाव न हो। दुबारा मौका या समय तो मिलेगा नहीं। पर जब तक है तब तक सही ढंग से जी सकते हैं। भारतीय क्रिकेटर सुनिल गावस्कर ने एक मराठी गीत गाया है-'जीवन म्हणजे क्रिकेट राजा, हुकला तो संपला.'(जीवन क्रिकेट के समान है बॅटिंग करते गेंद अगर मिस हो गई तो सब खत्म, विकेट तो जानी ही है)
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया विजय जी
Deleteगहन ह्रदय से उठती प्रार्थना।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया इमरान अंसारी जी
Deleteसुंदर रचना ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ......
बहुत शुक्रिया जी
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