Friday, 26 April 2013

दुविधा


दरवाजा बंद कर 
दस्तक भी
 देते हो 
गुम हो कर
 आवाज़
 भी लगाते हो ...

चुप रहने को कह 
नज़रो से सवाल
 भी करते हो 
आखिरी बार
मिलकर ,
मिलने भी चले 
आते हो ...

ये तुम बार -बार ,
हर बार ,
मुझे कैसी 
दुविधा में घुमा 
जाते हो ...

10 comments:

  1. अरे,यही तो होता है हमेशा!

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    1. हार्दिक आभार प्रतिभा जी

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  2. प्रेम सदैव डर और दुविधा में ही पलता है
    प्रेम की गहन अनुभूति
    सुंदर

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    1. हार्दिक आभार ज्योति खरे जी

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  3. प्रेम के भीतर का न मिटने वाला न अलग होने वाला जुडाव है यह। जिसको जो बहुत प्रेम करता है उसका व्यवहार ऐसे ही रहेगा और दूसरी ओर से प्रेम पाने वाले के मन में भी देने वाले के प्रति अपार प्रेम है इसीलिए देने वाले की भावना और मंशाओं को पकड रहा है।

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    1. हार्दिक आभार विजय जी

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  4. बहुत कठिन है डगर पनघट की !.......

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    1. कैसे कठिन है कृपया स्पष्ट करें जी ..मेरे लिए तो आज तक कोई भी डगर कठिन नहीं रही ...किसी डगर पर मैं चलूँ या ना चलूँ यह मेरी मर्ज़ी हो सकती है ...

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  5. सच दुविधा ही दुविधा..

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  6. प्रेम और दुविधा साथ-साथ....वाह!!

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