वेश बदल कर
मिलोगे
आहटें न
बदल पाओगे ..
लब सिल कर रखोगे
नज़रों
का बोलना ना
छुपा पाओगे ...
चलते -चलते राह
बदल दोगे
पगडंडियाँ ना
छोड़ पाओगे ...
मिलोगे भी नहीं
बात भी नहीं करोगे
सपने में आना ना
छोड़ पाओगे ...
तुम से मैं हूँ
मुझ से तुम हो
हर बात मुझसे जुडी है
तुम मुझसे ना
छुपा पाओगे ...
( चित्र गूगल से साभार )
बाह सुन्दर ,सरस रचना . बधाई .
ReplyDeleteसमय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आने का कष्ट करें .
हार्दिक आभार मदन मोहन जी
Deletebahut khoob
ReplyDeleteहार्दिक आभार वंदना जी
Deleteलबों को सिलाने के बावजूद भी कोई किसी के भीतरी बात को समझे, सपनों को कोई रोक नहीं लगा सकता, आहटे पहचानना... अपने प्रिय के सूक्ष्मताओं को दिलों-दिमाग में बिठाने वाला ही कर सकता है। आपकी कविता में हमेशा प्रेम का समर्पित भाव उजागर होता है। drvtshinde.blogspot.com
ReplyDeleteहार्दिक आभार विजय जी
Deleteकोमल भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteसुन्दर...
:-)
हार्दिक आभार रीना जी
Deleteवाह !बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteLATEST POSTसपना और तुम
हार्दिक आभार कालिपद जी
Deleteबहुत सुंदर....
ReplyDeleteहार्दिक आभार मोनिका जी
Deleteउपासना जी आपकी कविताएं अत्यंत सुंदर है और पाठकों के अभिव्यक्त न हो पाए भावों को प्रकट करती है। अगर यह किताब रूप में प्रकाशित हो चुकी है तो एकाध किताब मेरे पास भेज दें। समीक्षा करने को कविताएं आवाहन कर रही है। मेरा पता दे रहा हूं आप किताब स्पिड पोस्ट से भेज सकती हैं।
ReplyDeleteपता- डॉ.विजय शिंदे, 41-बी, शाहूनगर कों. सो., बंसीलालनगर रेल्वे स्टेशन रोड, औरंगाबाद-431005 (महाराष्ट्र)
उम्दा,बहुत प्रभावी प्रस्तुति !!! उपासना जी,
ReplyDeleterecent post : भूल जाते है लोग,
हार्दिक आभार धीरेन्द्र सिंह जी
Deleteलाजवाब...
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी
Deleteहार्दिक आभार सदा जी
ReplyDeleteसही कहा है "जहां न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि"
ReplyDeleteआप पर तो सटीक ही बैठती है ये बात .....
आपमे कल्पना शक्ति गज़ब है या कोई अनुभव विशेष ....!
पर उसकी प्रस्तुति अत्यंत सुंदर है ......
बहुत बहुत शुभकामनायें.... जी
बहुत शुक्रिया जी इतनी अमूल्य टिप्पणी के लिए ... आपकी बात के जवाब मे कहूँगी की दोनो ही है अनुभव और कल्पना शक्ति भी
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