प्रिय
कुछ वादे तुमने किए थे
और कुछ वादे
मैंने भी किये थे तुमसे
थाम एक दूसरे का हाथ ,
मान अग्नि को साक्षी ...
कुछ वादे किए थे मैंने
अपने आप से
तुम्हारे लिए
मान अपने अंतर्मन को साक्षी ...
साथ तुम्हारा कभी न छोडूंगी
कभी अनुगामिनी तो
कभी सहगामिनी बन
साथ चलूंगी सदा ....
अंधियारे राह में
मुझे ही पाओगे साथ सदा ही
रहूंगी खड़ी तुम्हारी राहों में
बन रोशनी की किरण .......
यही वादा निभाया भी है मैंने
जो किया था मैंने ,
मान अपने अंतर्मन को साक्षी .......
कुछ वादे तुमने किए थे
और कुछ वादे
मैंने भी किये थे तुमसे
थाम एक दूसरे का हाथ ,
मान अग्नि को साक्षी ...
कुछ वादे किए थे मैंने
अपने आप से
तुम्हारे लिए
मान अपने अंतर्मन को साक्षी ...
साथ तुम्हारा कभी न छोडूंगी
कभी अनुगामिनी तो
कभी सहगामिनी बन
साथ चलूंगी सदा ....
अंधियारे राह में
मुझे ही पाओगे साथ सदा ही
रहूंगी खड़ी तुम्हारी राहों में
बन रोशनी की किरण .......
यही वादा निभाया भी है मैंने
जो किया था मैंने ,
मान अपने अंतर्मन को साक्षी .......
तुमने चाँद उगे आना था,तुमने चाँद ढले जाना था.
ReplyDeleteयह तो सच्ची प्रीत नही ,कुछ तो वचन निभाया होता,,,
Recent Post : अमन के लिए.
हार्दिक धन्यवाद धीरेन्द्र सिंह जी
Deleteबहुत ही भावपूर्ण बेहतरीन रचना,आभार.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद राजेन्द्रकुमार जी
Deleteइसी को संबंध कहते हैं ... वादा अपने आप से किया ओर इसी पे उम्र भर टिकना ...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद दिगंबर नाशवा जी
Deleteबेहतरीन ,वादों के सुमन तो खिलेंगे भी और मुश्कुराएगे भी स्म्रितिओन का भाव पूर्ण झरोखा
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अज़ीज़ जौनपुरी जी
Deleteसमर्पित प्रेम की सुन्दर रचना...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद कैलाश शर्मा जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि क़ी चर्चा सोमवार [15.4.2013]के चर्चामंच1215 पर लिंक क़ी गई है,
ReplyDeleteअपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पधारे आपका स्वागत है | सूचनार्थ..
हार्दिक धन्यवाद सरिता भाटिया जी
Deleteबहुत सुन्दर भाव... शुभकामनाएं
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संध्या जी
Deleteसुन्दर रचना...शुभकामनाएं ..........
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद संध्या जी
Deleteवधू और वर बनते एक-दूसरे के साथ वादे तो किए जाते हैं पर अपने आपसे भी होते हैं। शादी नवीन जीवन में प्रवेश तो है और यह नवीन जीवन भारतीय संस्कृति में स्त्री के लिए पूर्णता नवीन होता है। गांव, घर, परिवार, बचपन, आंगन... सब कुछ छोड कर आना पडता है। दायित्व दुगुना हो जाता है- मैके और ससूराल को लेकर। उसकी तुलना में पुरुष थोडा बेफिक्र होता है उसमें दायित्वबोध केवल अपने परिवार को लेकर ही रहता है। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए आपके कविता के भीतर की नववधू वादें कर रही है।
ReplyDeleteकविता के साथ जोडी तस्विर ओरिजनल है-25.05.2011 की। हो सकता आपके किसी पारिवारिक सदस्य के शादी की हो। कविता के भाव के साथ एकदम जुडने वाली। अपने-आपसे वादे करती।
हार्दिक आभार विजय जी अपनी अमुल्य टिप्पणी के लिए ....यह तस्वीर मेरी ही शादी की है ( दी गयी तारीख पर फिर से एडिट की गयी है ) ...अभी २० जनवरी को शादी की २५ वी सालगिरह होने पर लिखी थी लेकिन घर पर ना होने के कारण पोस्ट नहीं की ...
Deleteचलो भाई जिस तर्क पर तस्विर को पहचानने की कोशिश की थी सच निकली। केवल फोटो पर की तारीख के कारण कन्फुजन रहा था और सोच रहा था आपके बेटी और जमाई की होगी पर चेहरा तो आपसे मिल रहा है शायद आपकी होगी मन में आया और फिर नजर पडी तारीख पर। तारीख नई, तो सोचा नहीं यह किसी पारिवारिक सदस्य की होगी। खैर आपको देर से ही भले शादी की 25 वीं सालगिरह मुबारक। और 25 साल पिछे जाकर अपने वादों का दुबारा मूल्यांकन करना बेहतरिन।
Deleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी
ReplyDeletebahut umda post
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद नीलिमा जी
Deleteबहुत प्यारी रचना!
ReplyDelete~सादर!!!
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी
Deleteबहुत भावपूर्ण पोस्ट.....तस्वीर भी बहुत अच्छी है.......बधाई हो आपको।
ReplyDeleteहार्दिक आभार इमरान अंसारी जी
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार शांति जी
Deleteबहुत सुन्दर तस्वीर ...और रचना तो अति भावपूर्ण .प्रेम से परिपूर्ण ....पत्नी के उद्गार ..अति सुन्दर ..
ReplyDeleteशुभ कामनाएं .
हार्दिक आभार महेश जी , मंजू जी
Deleteबहुत प्यारे भाव...इसे रचना कैसे कहूँ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!!
अनु
जीवन में साथ चलने का वादा और प्रेम का कोमल अहसास
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
बधाई
बेहतरीन रचना उपासना जी ................
ReplyDeleteह्रदय की आवाज़ ..........