Sunday, 15 October 2023

इंतज़ार और अभी..

रोज़ चाँद को निहारना 
उसका इंतजार करना 
जैसे तुम्हारे  आने की ही 
 राह  ताकना 

जिस दिन 
चाँद नहीं आता 
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
 उस  दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो 
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा 
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना  
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही 

तुम भी चाँद की तरह ही तो हो 
ना मालूम ,
मैं 
चाँद की राह ताकती हूँ या
 तुम्हारी  ,
चंद्रमा  की बढती-घटती  कलाओं के साथ 
झूलती रहती हूँ 
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ 
जिस राह  से तुम कभी नहीं आओगे 
चाँद तो अमावस के बाद आता है 
और तुम ! 
शायद  हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे 
फिर भी चाँद के साथ 
इंतजार तो करती ही हूँ  ....

9 comments:

  1. बहुत सुंदर

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  2. इंतजार कभी न खत्म होने वाला सिलसिला...
    पर जीने की उम्मीद भी है...
    सुंदर रचना।
    सादर।
    ---
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. विरह का हृदय स्पर्शी चित्रण चांद के माध्यम से।
    अप्रतिम लेखन।

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  4. वियोग का मर्म स्पर्शी चित्रण

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. ओह! प्रतीक्षा के पल कितने जानलेवा होते हैं ये जाने वाला कोई निष्ठुर क्या जाने 👌👌👋

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