चुप है हवाएँ ,
चुप है धरती ,
चुप ही है आसमान ,
और
चुप से हैं
उड़ाने भरते पंछी...
पसरी है
दूर तलक चुप्पियाँ।
इन घुटन भरी
चुप्पियों के समन्दरों में.
छिपे हैं,
जाने कितने ही ज्वार...
और
छुपी है
कितनी ही
बरसने को आतुर
घुटी -घुटी सी घटाएं...
चुप है धरती ,
चुप ही है आसमान ,
और
चुप से हैं
उड़ाने भरते पंछी...
पसरी है
दूर तलक चुप्पियाँ।
इन घुटन भरी
चुप्पियों के समन्दरों में.
छिपे हैं,
जाने कितने ही ज्वार...
और
छुपी है
कितनी ही
बरसने को आतुर
घुटी -घुटी सी घटाएं...