एक दिन
थम गई थी
घूमते-घूमते
जब धरा,
उस दिन
रुक गई थी
सहसा ही
चलते-चलते
जब हवा,
उसी दिन ही
सिमटा सा लगा
दूर तक फैला ,
आसमां..
ऐसे खामोश
थमे,रुके, सिमटे
जहां में
वह कैसा जलजला था ,
डगमगाए जाता था
मुझे...
शायद
स्पंदन थी
मेरे ह्रदय की
जो कंपन बनी थी
या कुछ और था..!