बुझ गए
रंगोलियों पर रखे दीप
बिखर गए
सारे रंग।
अब बिखरी हैं
मायूसियां
दर्द
कराहटें।
किसको सुनाइए
दर्द अपना,
जब टीसता हो
हर किसी का
दर्द अपना अपना।
चुप्पी भी
असहनीय,
कहा भी जाये
फिर क्या कहा जाये।
कहें भी किसे
बनावटी चेहरे है,
मूरतें हैं पत्थर की।