Saturday, 31 March 2012

भ्रम


कभी -कभी
मुझे लगता है
 तुम मेरे
आस -पास ही हो
और मैं तुम्हें
पहचान रही हूँ .......
 अक्सर होता है
ये भ्रम मुझे
शीशे के उस
पार तुम हो
मैं तुम्हें चाह कर भी
छू नहीं पा रही हूँ ...
अगर ये भ्रम है 
 तो भी यह
मेरे जीवन का
आधार है
 तुम्हारे होने के
अहसास ही को
 मैं 'जिए जा रही हूँ ...

Friday, 30 March 2012

अनाम से रिश्ते


कुछ रिश्ते जो अनाम
 होते है ,
फिर भी मन  के करीब
 लगते है ..............
जिनको छूने से भी डर
 लगता है लेकिन 
 मन से महसूस तो किया
 जाता है ,
जुबान पर नहीं लाया जाता .......
और नाम भी नहीं दिए जाते 
ऐसे अनाम रिश्तो को...........
तो फिर क्या कहिये ऐसे रिश्तों 
को,
 जिनका नाम आते ही होठों पर 
एक मधुर मुस्कान सी  आ 
जाती है ,
उस अनाम से रिश्ते को मुस्कान 
के रिश्ते का नाम  तो दे ही 
सकते है ........

Tuesday, 20 March 2012

ख़त

 बरसों बाद 
तुमको देखा तो ये 
ख़याल आया ...

 'कि  जिन्दगी धूप
तुम घना साया !'

नहीं ऐसा तो नहीं सोचा मैंने !
जिंदगी  में ,
 विटामिन- डी के लिए
धूप की भी तो जरुरत 
होती है !

तुम को देखा तो 
मुझे ख्याल आया 
उन खतों का
जो तुमने 
 लिखे थे कभी मुझे ...

वे खत
 मैंने अपनी यादों में
और खज़ाने की तरह 
एक संदुकची में संभाल कर 
रखे है
देख कर उनको 
तुम्हें भी याद कर लिया करती हूँ

तुमको देखा तो
अब फिर से ख्याल आया 
जो मैंने तुम्हें ख़त लिखे थे 
वे  मुझे वापस लौटा दो ...

समझने की कोशिश तो 
करो जरा मुझे ...!!
देखो गलत ना समझो मुझे 
वे ख़त  अब तुम्हारे भी किस
 काम के है !


अरे !
महंगे होते जा रहे है 
गैस -सिलेंडर 
अब  चूल्हा जलाने के काम 
 आयेंगे ना 
तुम्हारे और मेरे ख़त ...!




Saturday, 17 March 2012

क्या लिखूं


किसी ने कहा 
 कुछ ऐसा लिखो
जिसे पढ़  चेतना जाग जाये
सोई हुई आवाम की 

सोच में पड़ गई मैं 
 आवाम  के लिए लिखूं  !
 जागी हुई आवाम के लिए !

चेता करती है जो 
सिर्फ बम के धमाकों से 
या किसी मसीहा के आव्हान पर ही !
और सो जाती है
फिर से किसी मसीहा के इंतज़ार में। 

 ऐसी सोयी हुई 
जनता को जगाने के 
 कविता की नहीं, 
अलख की जरुरत है !
किसी ने फिर टोका 
 चलो नारी के लिए ही लिखो !

लेकिन किस नारी के लिए
जो डूबी हुई है 
दुनियां की चकाचौंध में 
 क्या लिख कर जगाऊं 
 उसे जो 
अपने ही जाल में उलझती जाती है
 हर रोज़ !

ऐसी  सोयी हुई नारी को 
 झिंझोड़ कर - झखझोर कर ,
अपने हाथों से जगाना चाहती हूँ,
लिख कर नहीं !

अब क्या लिखूं ,
किसके लिए लिखूं !

प्रिय

प्रिय तुम कितने प्रिय हो 
अब तुम्हे क्या और 
क्यूँ बताऊँ .........
मैं तो बस तुम्हारी मंद मुस्कान 
में ही खोयी रहती हूँ ...........
मुझे तुम्हारा प्यार सागर की 
गहराई में भी नज़र नहीं आता ,
पर्वतों जैसा ऊँचा भी नहीं नज़र आता ,
मुझे नज़र आता है तुम्हारी आँखों की 
चमक में जो मुझे देख बढ़ जाती है ,
और ठुड्डी पर पड़ने वाले गड्ढे 
में जो मुझे देख और गहरा होता 
जाता है ............
मुझे तुम ना राम जैसे और ना ही
श्याम जैसे लगते हो ............
मुझे तुम शिव जैसे लगते हो ,
जिसने अपनी प्रिय के लिए 
सारे जग में तांडव ही मचा दिया था ....
प्रिय अब मैं तुम्हे क्या बताऊँ कि
तुम कितने प्रिय हो ..........!


Thursday, 15 March 2012

जब कोई इंसान मुहब्बत में होता है ...


जब कोई इंसान
मुहब्बत
में होता है
 उसे वृक्षों की पत्तियां 
 हरी दिखाई देने लग जाती है ...

खिले फूल ,
आसमान में
उड़ते पंछी भी
बहुत सुन्दर दिखाई
देने लगते हैं ...

 ज्यादा भावुक भी
क्या होना है अब
यह जान -समझ कर ...


 कि कोई इंसान
मुहब्बत में नहीं भी होता है
तो ,
उसे भी वृक्षों की पत्तियाँ हरी ,
खिले फूल सुन्दर
और
आसमान में उड़ते पंछी भी
अच्छे ही दिखाई देतें है ...

उनकी कहीं कोई
नज़र कमजोर थोड़ी ना
होती है ........

Friday, 9 March 2012

सौ का नोट

सुबह -सुबह ही ये क्या हो गया !
हवा के झोंकें के साथ मेरा सौ -
रूपये का नोट उड़ गया और मैं ,
उसके पीछे -पीछे दौड़ पड़ी ........
नोट , स्कूल जाते बच्चे के आगे 
गिरा और उसने झट से उठा लिया ,
बोला अरे वाह !आज तो पार्टी ही हो
जाएगी ,बहुत सारी चीज़ें खाऊंगा ............
बच्चे ने नोट को पकड कर आँखों
पर रखा कि ये तो फिर उड़ गया
बच्चे को लपकते छोड़ कर नोट ,
फूल वाली की टोकरी में जा गिरा ,
उसने नोट को दोनों हाथों से पकड़
कर,मन ही मन ना जाने कितने
सपनो के फूल खिला दिए .......
पर ये फिर उड़ चला और मंदिर में
पुजारी के आगे जा गिरा और
पुजारी की निराश आँखों में चमक
आ गयी कि प्रभु का चमत्कार हो गया ,
अब तो पत्नी की दवाई आ जाएगी ......
पर ये कहाँ रुकने वाला था पुजारी की

आँखों को बेनूर करता , सीधे नेता जी
की गोद में ही जा गिरा और अब मैं भागते -
दौड़ते थक भी गयी और निराश भी हो गयी
कि ये मेरा नोट तो गया अब हाथ से .....ये तो
बहुत कुछ खा जाते है मेरा नोट क्या छोड़ेंगे !!!
पर नेता जी को सौ के नोट की क्या परवाह थी
उठाया और फूंक मार कर उड़ा दिया ,पर अब
की बार मैंने उसे पकड ही लिया और मुट्ठी
में दबा कर चल पड़ी .............

Sunday, 4 March 2012

एक नन्हा सा दिल

थोडा सा आसमान ,


एक मुट्ठी धरा,


जरा सी अग्नि ,


दो तीन लहरे और 


एक अंजुरी भर हवा ,


को एक साथ समेट कर

उसमे दो हीरे जड़ने ही तो


चाहे थे
.............

साथ में एक नन्हा सा दिल


जो पायल की तरह धडकता


अपनी सांसों के साथ 

.........
पर न आसमान मिला न धरा ,


समय की अग्नि ने लहरों को


झुलसा कर हवाओं को ही


गरमाए रखा 

.............................
दूर से ही चमकते दिखे वो हीरे और


एक नन्हा सा दिल जो .................