तुम्हें सोचा
तो सोचा,
देखूं एक बार तुम्हें।
लेकिन
जाने कहाँ
छुप गए हो
तुम तो कहीं !
फिर देखूं तो
कहाँ देखूं ,
कहाँ खोजूँ तुम्हें ।
बिखरा तो है
बेशक़
तुम्हारा वजूद,
यहाँ-वहां।
मूर्त रूप
चाहूँ देखना तुम्हें,
फिर
कहाँ देखूँ !
खोजना जो चाहा
चाँद में तुम्हें।
सोचा मैंने चाँद को
तुम भी तो
देखते होंगे।
तुम चाँद में भी नहीं थे
लेकिन,
क्यूंकि
अमावस की रात सी
तकदीर है मेरी।
तो सोचा,
देखूं एक बार तुम्हें।
लेकिन
जाने कहाँ
छुप गए हो
तुम तो कहीं !
फिर देखूं तो
कहाँ देखूं ,
कहाँ खोजूँ तुम्हें ।
बिखरा तो है
बेशक़
तुम्हारा वजूद,
यहाँ-वहां।
मूर्त रूप
चाहूँ देखना तुम्हें,
फिर
कहाँ देखूँ !
खोजना जो चाहा
चाँद में तुम्हें।
सोचा मैंने चाँद को
तुम भी तो
देखते होंगे।
तुम चाँद में भी नहीं थे
लेकिन,
क्यूंकि
अमावस की रात सी
तकदीर है मेरी।