सब खामोश हैं
मैं , यह दरख्त ,
मेरी तन्हाई भी ...
मैं खामोश तो हूँ ,
लेकिन
अंतर्मन में एक शोर
मचा है ...
मचा है
एक कोलाहल सा ,
सुनता कौन इसे लेकिन
दबाए खड़ा हूँ मौन ...
मौन तो यह दरख्त
भी नहीं
बस खड़ा है ना जाने कितने
कोलाहल
बसाये अपने भीतर
(चित्र गूगल से साभार)