Saturday, 28 March 2015

राम का राम होना आसान तो न था।

राम का
राम होना
आसान तो न था।

हर कोई
उर्मिला, कौशल्या ,
सुमित्रा के त्याग को सराहते ,
सीता पर हुए
अन्याय को है गाते.…

सीता को देख
लक्ष्मण रेखा के भीतर ,
हर कोई  छटपटाता ,
राम के
 मन के सागर में
लगा बाँध
राम किसे दिखाता ....

पुत्र राम सा हो ,
लेकिन
वर राम सा नहीं।
परन्तु क्यों ?

क्या इसलिए
कसौटी पर रखा
सीता को
अग्निपरीक्षा की
या दिया
सीता को  वनवास।

राम के लिए भी
क्या आसान था !
 मर्यादा का
बाँध बना कर
 बंधन सा जीवन जीना।

 जीवन जीना मर्यादा में
जैसे चलना था
कंटक पथ पर  जैसे !
क्या सच में कठिन नहीं था
राम का राम सा होना !


Wednesday, 25 March 2015

प्रेम कभी -कभी तुम.....

प्रेम
कभी -कभी
तुम
दुःख हो ,विषाद हो।

और
कभी कभी
तुम
उदासी भी हो।

दूर से नज़र आती
रोशनी हो जैसे।

जो
दिखाई तो दे
मगर
उजाला ना करे।

जलती रहे
दिल में
 जलाये ही दिल को।

प्रेम
कभी -कभी
तुम ......


Saturday, 21 March 2015

प्रेम से नाराजगी कैसी....

प्रेम से
नाराजगी कैसी
जब प्रेम हो
वट वृक्ष सा...
शीतल घनेरी
छाँव सी मुस्कान,
सरसराता ठंडा
झोंका सी
उसकी बातें ।
फैला हुआ हो
वजूद दूर तक
जैसे वट वृक्ष की जड़ें ।
मुरझाई लता मैं
बिन प्रेम
फिर
नाराजगी क्यों कर
ऐसे प्रेम से ।