Wednesday, 24 February 2016

क्यूंकि तुम रेत पर कदमों के निशां जो छोड़ जाते हो !

 समुन्दर से
मन की लहरें
भागती है क्यूँ
बार -बार
किनारे की तरफ !

तम्हें तलाशती है !
सच में !
या
शायद उनको
मालूम है
तुम्हारा वहां आ जाना
बिन बताये
बिन आहट !

क्यूंकि  तुम
जाने - अनजाने में
रेत पर कदमों
के निशां
जो छोड़ जाते हो !


Wednesday, 17 February 2016

कैसा ये खेल है सूत्रधार का ....

रंगमंच सी दुनिया है ,
सूत्रधार की कल्पना से परे !

पुरुषों के दो सर हैं 
और स्त्रियां हैं यहाँ
बिना सर की  !

बेटे के पिता का सर ,
बेटी के पिता से कितना भिन्न है !

एक बहन के भाई का सर भी
तो भिन्न है !
राह जाती किसी दूसरी
बहन के भाई से !

 देख कर अपनी 
सुविधा -सहूलियत 
पुरुष बदल लेते हैं अपने सर !

यहाँ स्त्रियां खुश रहती हैं
 इसी बात में ,
जन्म से ही बिना सर की हैं वे !
सिर नहीं है तभी तो 
कदम चलते हैं  उनके ,
जमे रहते हैं धरा पर !

कुछ स्त्रियां  हैं ,
जिनके उग आए हैं सर !
लेकिन घर की चार दीवारी के
 बाहर तक ही 
क्यूंकि
घर में प्रवेश मिलता है सिर्फ
बिना सर वाली स्त्रियों को ही..

कुछ ऐसे भी हैं
बिना सर के
वे न स्त्री है न पुरुष है !

नपुसंक है वे
आसुरी प्रवृत्ति रखते हैं  !
रोंदते हैं अपनी ही क्यारियों को
उजाड़ते हैं अपने ही आसरों को !

कैसा ये खेल है सूत्रधार का...
क्या वह भी मुस्कुराता है !

जब खेल देखता है
इन बदलते सिरों का ,
उगे सिरों को उतरने का ,
 अपने कदमों तले
रोंदते अपने ही सिरों को !

यह भी तो हो सकता है
पात्र अपने सूत्रधार की
 पटकथा से परे
अपनी मर्ज़ी के किरदार अदा करते हों !

और सूत्रधार ठगा सा,
हैरान सा
रह जाता है देखता !

















Saturday, 13 February 2016

प्रेम की पराकाष्ठा है ...

मन भागता है
अनन्त  की ओर
अनदेखे -अनजाने
पथ की ओर
निर्वात की ओर !

देखता है
प्राणों का देह से
विलग होना
और
देखता है
देह को विदेह होते !

यह देह का
विदेह हो जाना
मन का अनन्त की ओर
भटकना ,
प्रेम की पराकाष्ठा है।
शायद !

Wednesday, 3 February 2016

जब याद तुम्हें आऊं और तुम मुस्कुरा दो

जब तुम्हारी याद ही बन

कर रहना है तो


क्यूँ ना मधुर याद ही


बन कर रहूँ ..!


जब याद तुम्हें आऊं 

और तुम मुस्कुरा दो 

फिर क्यूँ न 

तुम्हरे होठो की मुस्कान

बन के ही रहूँ ...

मैं आंसूं बन के क्यूँ रहूँ 

कि  तुम मुझे याद करो 

और मैं 

तुम्हे आँखों ही से गिर पडूँ....

 मैं हूँ तुम्हारे साथ 

 आँखों में तुम्हारी  

चमक बन के 

आईना निहारो जब भी तुम 

और  मैं 


मधुर याद की तरह

तुम्हारे होठो पर मुस्कराहट बन

खिली रहूँ ...