Wednesday, 15 July 2015

औरतें ! औरतों की दुश्मन कब हुई है ...

औरतें !
औरतों की दुश्मन
होती है !
ये शब्द तो पुरुषों के ही है ,
कहलवाया गया है लेकिन यह
 औरतों की जुबान से।

और कहला कर
उनके दिमाग मे
बैठा दिया गया है अच्छी तरह से।

लेकिन औरतें !
औरतों की दुश्मन
कब हुई है भला …!

जितना  समझ सकती है
एक - दूसरी को ,
उतना और कौन समझता है।

उसकी उदासी में ,
तकलीफ में ,
उसके दुःख में
 कौन मरहम लगाती है !

कौन उसे
प्यार और ममता की
 चदार ओढ़ा देती है !
कौन स्नेह के धागे से
 बाँध लेती है !

एक औरत ही होती है ,
जो कभी माँ बनकर ,
कभी बहन तो
कभी एक सखी बन कर
दूसरी औरत का
 मन पढ़ लेती है।

और अपने प्यार से
सराबोर किये
रखती है। 

Monday, 6 July 2015

तुम रूक गए हो बुकमार्क की तरह....

जिन्दगी की किताब के
हरेक पन्ने पर
सुंदर हर्फो से लिखी है
कितनी ही इबारतें
कदम अक्सर
ठिठक ही जाते हैं
किताब के उस पन्ने पर
जहाँ तुम रूक गए हो
बुकमार्क की तरह....