औरतें !
औरतों की दुश्मन
होती है !
ये शब्द तो पुरुषों के ही है ,
कहलवाया गया है लेकिन यह
औरतों की जुबान से।
और कहला कर
उनके दिमाग मे
बैठा दिया गया है अच्छी तरह से।
लेकिन औरतें !
औरतों की दुश्मन
कब हुई है भला …!
जितना समझ सकती है
एक - दूसरी को ,
उतना और कौन समझता है।
उसकी उदासी में ,
तकलीफ में ,
उसके दुःख में
कौन मरहम लगाती है !
कौन उसे
प्यार और ममता की
चदार ओढ़ा देती है !
कौन स्नेह के धागे से
बाँध लेती है !
एक औरत ही होती है ,
जो कभी माँ बनकर ,
कभी बहन तो
कभी एक सखी बन कर
दूसरी औरत का
मन पढ़ लेती है।
और अपने प्यार से
सराबोर किये
रखती है।
औरतों की दुश्मन
होती है !
ये शब्द तो पुरुषों के ही है ,
कहलवाया गया है लेकिन यह
औरतों की जुबान से।
और कहला कर
उनके दिमाग मे
बैठा दिया गया है अच्छी तरह से।
लेकिन औरतें !
औरतों की दुश्मन
कब हुई है भला …!
जितना समझ सकती है
एक - दूसरी को ,
उतना और कौन समझता है।
उसकी उदासी में ,
तकलीफ में ,
उसके दुःख में
कौन मरहम लगाती है !
कौन उसे
प्यार और ममता की
चदार ओढ़ा देती है !
कौन स्नेह के धागे से
बाँध लेती है !
एक औरत ही होती है ,
जो कभी माँ बनकर ,
कभी बहन तो
कभी एक सखी बन कर
दूसरी औरत का
मन पढ़ लेती है।
और अपने प्यार से
सराबोर किये
रखती है।