जिस दिन से तुमने
राह बदल दी
उस दिन से मैंने
मंजिल की
चाह छोड़ दी ...
चाह छोड़ी है बस
मंजिल की ही
तुम्हारे साथ की नहीं छोड़ी
चाह मैंने कभी ...
बैठी हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे गुनगुनाने की
और
मेरे मुस्कुराने की ...
जिस दिन से तुमने
गुनगुनाना
छोड़ दिया
उस दिन से मैंने
मुस्कुराना
छोड़ दिया ....
दीवारों को निहारती हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे अक्स के उभर
आने की ..
जिस दिन से
तुमने मुहँ फेर लिया
मैंने आईना
देखना छोड़ दिया ...
राह बदल दी
उस दिन से मैंने
मंजिल की
चाह छोड़ दी ...
चाह छोड़ी है बस
मंजिल की ही
तुम्हारे साथ की नहीं छोड़ी
चाह मैंने कभी ...
बैठी हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे गुनगुनाने की
और
मेरे मुस्कुराने की ...
जिस दिन से तुमने
गुनगुनाना
छोड़ दिया
उस दिन से मैंने
मुस्कुराना
छोड़ दिया ....
दीवारों को निहारती हूँ
एक चाह लिए
तुम्हारे अक्स के उभर
आने की ..
जिस दिन से
तुमने मुहँ फेर लिया
मैंने आईना
देखना छोड़ दिया ...