Tuesday, 5 May 2020

मैं खामोश हूँ

सब खामोश हैं 
मैं , यह दरख्त ,
मेरी तन्हाई भी ...

मैं खामोश तो हूँ ,
लेकिन 
अंतर्मन में एक शोर 
मचा है ...

मचा है 
एक कोलाहल सा ,
सुनता कौन इसे लेकिन 
दबाए खड़ा हूँ मौन ...

मौन तो यह दरख्त 
भी नहीं 
बस खड़ा है ना जाने कितने 
कोलाहल 
बसाये अपने भीतर 
मुझ जैसों का मौन ...
(चित्र गूगल से साभार)