Sunday, 25 December 2016

प्रेम तुम कहीं नहीं हो

प्रेम तुम,
छद्म रूप हो
माया हो
मोह हो
मरीचिका हो,

ना नज़र
आने वाली
अप्राप्य वस्तु से हो

मुट्ठी में बंद
रेत  से  हो
फिसलते जाते हो
 पल-पल,

पतझड़ के
गिरते पत्ते की
 तरह हो

जाड़े की धूप
जैसे हो
बिना गर्माहट लिए,

प्रेम तुम ,
कुछ भी हो सकते हो
बस
ख़ुशी नहीं हो सकते,

निराशा हो
आँखों की धुंधली होती
चमक की तरह.

प्रेम तुम
कहीं नहीं हो,
अगर हो तो
बस मृत्यु पथ पर ही।



Friday, 9 December 2016

मेरी यह जिन्दगी तुम से ही तो खूबसूरत है ...

शुक्रिया जिंदगी ,
पल-पल
साथ देने को ,
चाहे कभी तुम भ्रम हो
 कभी सत्य।

नज़र आती हो
धुंध के धुँधलके में
कभी परछाई सी।

बढ़ती हूँ तेरी और
बढ़ाते हुए
धीमे -धीमे कदम ,
गुम हो जाती हो
भ्रम सी।

फिर भी जिंदगी
खूबसूरत हो तुम !

क्या फर्क है
तुम जिन्दगी हो
 या
तुम्हारा नाम जिन्दगी है।

चाहे तुम भ्रम ही
 क्यूँ ना हो ,
मेरी यह जिन्दगी
तुम से ही तो
 खूबसूरत है !