शुक्रिया जिंदगी ,
पल-पल
साथ देने को ,
चाहे कभी तुम भ्रम हो
कभी सत्य।
नज़र आती हो
धुंध के धुँधलके में
कभी परछाई सी।
बढ़ती हूँ तेरी और
बढ़ाते हुए
धीमे -धीमे कदम ,
गुम हो जाती हो
भ्रम सी।
फिर भी जिंदगी
खूबसूरत हो तुम !
क्या फर्क है
तुम जिन्दगी हो
या
तुम्हारा नाम जिन्दगी है।
चाहे तुम भ्रम ही
क्यूँ ना हो ,
मेरी यह जिन्दगी
तुम से ही तो
खूबसूरत है !
पल-पल
साथ देने को ,
चाहे कभी तुम भ्रम हो
कभी सत्य।
नज़र आती हो
धुंध के धुँधलके में
कभी परछाई सी।
बढ़ती हूँ तेरी और
बढ़ाते हुए
धीमे -धीमे कदम ,
गुम हो जाती हो
भ्रम सी।
फिर भी जिंदगी
खूबसूरत हो तुम !
क्या फर्क है
तुम जिन्दगी हो
या
तुम्हारा नाम जिन्दगी है।
चाहे तुम भ्रम ही
क्यूँ ना हो ,
मेरी यह जिन्दगी
तुम से ही तो
खूबसूरत है !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-12-2016) को पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसाँसों का खेल ही जिंदगी है ... स्वतः है ये भ्रम कहाँ है ...
ReplyDeleteगहरी बात ...
सुन्दर रचना!!!
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा .... Sundar lekh ... Thanks for sharing this nice article!! :) :)
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