Saturday, 31 January 2015

इस लिए सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा ....

आओ साथी
एक पाती लिखें,
प्रेम भरा एक पाती,
एक दूजे के लिए...

तुमने लिखा
सूरज, चाँद और तारों पर
अधिपत्य तुम्हारा है !

धरती से
 आकाश की हद तक
हक तुम्हारा है !

जो कुछ तुम्हारा है
वही मेरा ही है !

सब कुछ 
लिख दिया तुमने !

मैंने लिखा
मेरी कलम में
सियाही बहुत कम है

इस लिए सिर्फ
तुम्हारा नाम लिखा ....

इंतज़ार को समझोगे.....

उदासियों को
समझोगे
समझ आएगा
मन का अकेलापन

अंधकार को
समझोगे
समझ आएगा
दीपक का अकेलापन

इंतज़ार को
समझोगे
समझ आएगा
मेरा अकेलापन....

Sunday, 25 January 2015

हाइकु ( बेटी )


1 )
बेटी  जन्म
होता है वरदान
निराश क्यूँ हो

2)
धी चले जब
पहन के पायल
आँगन झूमे

3)
मुस्काती सुता
घर -आँगन हँसे
खिलखिलाए

4)
छूटा नैहर
मुड़ देखती बेटी
सजल नैन

5)
नया संसार
जड़ें जमाती बेटी
पिया का संग

6)
स्नेह बंधन
दो घरों से जोड़ती
बेघर बेटी

7)
मन ही मन
मन्नत है मांगती
बेटी है माता  

Wednesday, 21 January 2015

पर्दों के पीछे इंसान जैसा कोई रहता है....

चारदीवारी में
एक बड़ा सा दरवाजा है
एक दरवाजा छोटा सा भी हैं
ताला लगा है लेकिन वहाँ
भीतर की तरफ

चारदीवारी के भीतर
कई खिड़की दरवाजों वाली
इमारत है
कुछ रोशनदान से झरोखे भी हैं
लेकिन  वे
कस कर बंद कर दिए गए हैं...

इस घर जैसी इमारत में
कई कमरे है
कमरों के दरवाजों पर पर्दे है ं

पर्दों के पीछे
इंसान जैसा कोई रहता है

इस इंसान के पास
हृदय जैसी एक चीज भी है
और
इस हृदय को
उड़ान भरने से कोई
ताला , चारदीवारी रोक
सकती  नहीं.....

Monday, 19 January 2015

सबसे ऊपर तुम्हारा नाम लिखा...

ब्रह्मांड से
सबसे
चमकीले
सूरज चाँद चुने
उपवन से
सबसेमहकते
गुलाब चुने

लेकिन
फिर भी
लगा कुछ अधूरा
मुझे
इन में
सबसे ऊपर
तुम्हारा नाम लिखा
तब ही
मेरा जीवन
मधुर गान बना.....

Saturday, 17 January 2015

हायकू ( बून्द )

1)
शशि किरण
बनी ओस की बून्द
चातक मन

2)
झिलमिलाती
चपल बालक सी
चंचल बूंदे

3)
कोमल छवि
कर पर कांपती
मोती सी बूंदे

4)
 बेबस मन
बरसती है बिन
बरखा बूंदे


Sunday, 4 January 2015

तुम्हारा और मेरा आसमान....

अब अलग-अलग
है क्या
तुम्हारा और मेरा
आसमान

मेरे आसमान पर
घने बादल
और
तुम्हारे आसमान पर
चाँद -तारे

मुझे इंतज़ार था
तुम्हारे संदेशों का
जो तुमने कहा होगा
चाँद और तारों से

मैं ढूँढती रही,
ताकती रही
बार -बार आसमान
और किया इंतज़ार
घटाओं के बरस कर
घुल जाने का

लेकिन वो
घटाएं मेरी आँखों में
उतर आई है

बरसती आँखें
ना देख पाई
आसमान में लिखा संदेश....

इंतज़ार है अब
तुम्हारे और मेरे आसमान के
एक होने का

Saturday, 3 January 2015

कोहरे में निकली औरत ...

कोहरे में निकली औरत
ठिठुरती , कांपती
सड़क पर जाती हुई ।

जाने क्या मज़बूरी रही होगी
इसकी अकेले
यूँ कोहरे में निकलने की !

क्या इसे ठण्ड नहीं लगती !

पुरुष भी जा रहें है !
कोहरे को चीरते हुए ,
पुरुष है वे !
बहुत काम है उनको !
घर में कैसे बैठ सकते हैं ?

लेकिन एक औरत ,
कोहरे में क्या करने निकली है ?

यूँ कोहरे से घिरी
बदन को गर्म शाल में लपेटे
सर ढके हुए भी
गर्म गोश्त से कम नहीं लगती।

कितनी ही गाड़ियों के शीशे
सरक जाते हैं ,
ठण्ड की परवाह किये बिना
बस !एक बार निहार लिया जाये
उस अकेली जाती औरत को !

कितने ही स्कूटर ,
हॉर्न बजाते हुए डरा जाते है
पास से गुजरते हुए।

वह बस चली जाती है।
थोड़ा सोचती
या मन ही मन हंसती हुई

वह औरत ना हुई
कोई दूसरे ग्रह का प्राणी हो ,
जैसे कोई एलियन !

ऐसे एलियन तो हर घर में है ,
फिर सड़क पर जाती
कोहरे में लिपटी हुई
औरत पर कोतूहल क्यों ?








Thursday, 1 January 2015

बात करें हम कल ही की...

नए साल में
कल की बात
क्यों ना करें ,
कल से ही तो आज है....

कल थोड़ा गम था
आज खुशी की आशा है।
कल अंधकार था
आज रोशनी की ओर बढ़ते कदम है....

कल, कल - कल बहती नदिया थी
आज नदिया का सागर
बन जाने की तमन्ना है.....

कल की परछाई जब आज है ,
फिर क्यों ना करें
बातें कल की ,
आज का दिन भी
बन ही जाएगा कल। 

बात करें हम कल ही की
आने वाले कल की
आज की मुस्कान के
कल खिलखिलाहट बन जाने की...