कहाँ भटकती है तू
बन-बन
कस्तूरी मृग की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझ में ही
निहित ...
एक बार सर तो उठा
आसमान खुला है तेरे लिए भी
एक बार बाहें तो फैला
भर ले आसमान ,
इनमे ...
एक बार आवाज़ उठा के तो
देख ,
देख तो सही एक आवाज़ पर
कितने हौसले बुलंद हो उठेंगे
कितने ही कदम तेरे साथ
बढ़ चलेंगे ...
मत भटक किसी मसीहा की
तलाश में
ना भ्रम रख किसी के
आने का ...
मत भटक तू कस्तुरी मृग
की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझी में
निहित ...
बन-बन
कस्तूरी मृग की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझ में ही
निहित ...
एक बार सर तो उठा
आसमान खुला है तेरे लिए भी
एक बार बाहें तो फैला
भर ले आसमान ,
इनमे ...
एक बार आवाज़ उठा के तो
देख ,
देख तो सही एक आवाज़ पर
कितने हौसले बुलंद हो उठेंगे
कितने ही कदम तेरे साथ
बढ़ चलेंगे ...
मत भटक किसी मसीहा की
तलाश में
ना भ्रम रख किसी के
आने का ...
मत भटक तू कस्तुरी मृग
की भांति ,
तेरी शक्ति है तुझी में
निहित ...