बाहर से किसी ने पुकारा तो देखा
दीये बेचने वाली का बेटा खड़ा था ,
देख कर मुस्काया,
दीवे नहीं लेने क्या
बीबी जी ...........
दीवे नहीं लेने क्या
बीबी जी ...........
मैंने भी उसकी भोली मुस्कान का
जवाब मुस्कान से दिया,
लेने है भई,
पर तेरी माँ क्यूँ नहीं आयी .....
लेने है भई,
पर तेरी माँ क्यूँ नहीं आयी .....
माँ तो अस्पताल में भर्ती है बीबी जी ,
ओह ,मैंने कहा,
और साथ में तेरा भाई है ये ................
और साथ में तेरा भाई है ये ................
नहीं मेरी छोटी बहन है ये ......
अच्छा तू कितने साल का है ,
कौनसी में पढता है ,
तेरे पिता कहाँ है ,
और तुम दो ही भाई -बहन हो क्या .........
तेरे पिता कहाँ है ,
और तुम दो ही भाई -बहन हो क्या .........
एक सांस में कई सवाल पूछ लिए ,
वो एक जिम्मेदार बेटा -भाई बन कर
बोला ,
मैं आठवीं पास हूँ और पन्द्रह
मैं आठवीं पास हूँ और पन्द्रह
वर्ष का हूँ ,
हम तीन भाई -बहन है
हम तीन भाई -बहन है
एक दीदी है जो ससुराल में है ,उसके
बेटा हुआ है .........
पिता जी कुछ भी नहीं करते, कई
वर्षों से नशा करते थे .......
मैंने कुछ बुरा सा मुहं बनाया तो
बोला
नहीं बीबी जी ...!
अब तो वह लाचार सा है ,
कई बार तो खाना
नहीं बीबी जी ...!
अब तो वह लाचार सा है ,
कई बार तो खाना
भी नहीं खाया जाता उससे ..
ऐसे पिता के लिए भी उसके मन
में इतनी श्रद्धा,...!!
मेरा मन भीग सा गया ,
वो बोले जा रहा था .......
दीदी को भी त्यौहार पर कुछ देना है ,
माँ अगर ठीक होती तो पैसे ज्यादा बन जाते
पर अब जैसे भी बनेगा कुछ तो करूँगा ही ,
और मैं बस उसके भोले मुख को देखती हुयी
उसकी बातें सुनती जा रही थी ........
मैंने दीये लेकर रुपयों के साथ एक -एक
सेव पकडाया और उन दोनों को जाते
देखती रही ........
कि ये कौन है
कि ये कौन है
पंद्रह वर्ष का बालक ,या
अपनी बहनों की जिम्मेदारी उठाता
नव -जवान या
अपने बीमार माता -पिता की भी
जिम्मेदारी उठता प्रोढ़ ...............!!
उपासना जी आपकी रचना ने झकझोर दिया ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया जी
Deleteसमय की मजबूत दीवार
ReplyDeleteआज भी देश में कई लोग इस तरह जीवन से संघर्स करते मिल जायेगें,
ReplyDeleteउत्कृष्ट, मन को झिझोडती एक बेहतरी प्रस्तुति,,,बधाई,,,उपासना जी,,,,,,
RECENT POST:..........सागर
बहुत -बहुत शुक्रिया जी
Deleteआपने तीन बच्चे कहानी की याद दिला दी
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया जी
Deleteसंवेदनशील रचना..
ReplyDeleteसमय और हालात ने नन्हें से बालक को
वक्त से पहले ही जिम्मेदार बना दिया...
बहुत -बहुत शुक्रिया रीमा जी ..सच है हालत ही इन्सान को परखता है
Deleteसमय की मार वक़्त से पहले ही बड़ा कर देती है ।
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया जी ..सच है...
Deleteआपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत -बहुत शुक्रिया जी
Deleteआपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
एक बार फिर से बहुत आभार
Deleteमार्मिक
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुक्रिया जी ...
Deleteमार्मिक रचना ।
ReplyDeleteआपकी रचना पढ़ कर मुझे अपनी लिखी एक कविता याद आ गई अभी खिसकना सीखा था वक़्त ने कैसे बड़ा किया कुछ कठोर सच्चाई ने कमर तोड़ महंगाई ने नन्हे पैरों पर खड़ा किया ये हमारे देश की अन्दर की सच्चाई है हिला के रख दिया आपकी इस रचना ने
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति ...जब कोई साथ नहीं होता है तो फिर समय उम्र से पहले मजबूत बना देता है ....
ReplyDeleteमार्मिक, झकझोर दिया रचना ने
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