Wednesday, 7 November 2012

दीये बेचने वाली का बेटा


बाहर से किसी ने पुकारा तो देखा 
दीये बेचने वाली का बेटा खड़ा था ,
देख कर मुस्काया,
दीवे नहीं लेने क्या 
बीबी जी ...........
मैंने भी उसकी भोली मुस्कान का 
जवाब मुस्कान से दिया,
 लेने है भई,
पर तेरी माँ क्यूँ नहीं आयी .....
माँ तो  अस्पताल में भर्ती है बीबी जी ,
ओह ,मैंने कहा,
और  साथ में तेरा भाई है ये ................
नहीं मेरी छोटी बहन है ये ......
अच्छा तू कितने साल का है ,
कौनसी में पढता है ,
तेरे पिता कहाँ है ,
और तुम दो ही भाई -बहन हो क्या .........
एक सांस में कई सवाल पूछ लिए ,
वो एक जिम्मेदार बेटा -भाई बन कर 
बोला ,
मैं आठवीं पास हूँ और पन्द्रह 
वर्ष का हूँ ,
हम तीन भाई -बहन है 
एक दीदी है जो ससुराल में है ,उसके 
बेटा हुआ है .........
पिता जी कुछ भी नहीं करते, कई 
वर्षों से नशा करते थे .......
मैंने कुछ बुरा सा मुहं बनाया तो 
बोला
नहीं बीबी जी ...!
 अब तो वह लाचार सा है ,
कई बार तो खाना 
भी नहीं खाया जाता उससे ..
ऐसे पिता के लिए भी उसके मन 
में इतनी श्रद्धा,...!!
मेरा मन भीग सा गया ,
वो बोले जा रहा था .......
दीदी को भी त्यौहार पर कुछ देना  है ,
माँ अगर ठीक होती तो पैसे ज्यादा बन जाते 
पर अब जैसे भी बनेगा कुछ तो करूँगा ही ,
और मैं बस उसके भोले मुख को देखती हुयी 
उसकी बातें सुनती जा रही थी ........
मैंने दीये लेकर रुपयों के साथ एक -एक 
सेव पकडाया और उन दोनों को जाते 
देखती रही ........
कि ये कौन है
 पंद्रह वर्ष का बालक ,या
 अपनी बहनों की जिम्मेदारी उठाता
 नव -जवान या 
अपने बीमार  माता -पिता की भी 
जिम्मेदारी उठता प्रोढ़ ...............!!


22 comments:

  1. उपासना जी आपकी रचना ने झकझोर दिया ।

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया जी

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  2. समय की मजबूत दीवार

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  3. आज भी देश में कई लोग इस तरह जीवन से संघर्स करते मिल जायेगें,
    उत्कृष्ट, मन को झिझोडती एक बेहतरी प्रस्तुति,,,बधाई,,,उपासना जी,,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया जी

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  4. आपने तीन बच्चे कहानी की याद दिला दी

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया जी

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  5. संवेदनशील रचना..
    समय और हालात ने नन्हें से बालक को
    वक्त से पहले ही जिम्मेदार बना दिया...

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया रीमा जी ..सच है हालत ही इन्सान को परखता है

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  6. समय की मार वक़्त से पहले ही बड़ा कर देती है ।

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया जी ..सच है...

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  7. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. बहुत -बहुत शुक्रिया जी

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  8. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (10-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. एक बार फिर से बहुत आभार

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  9. Replies
    1. बहुत -बहुत शुक्रिया जी ...

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  10. आपकी रचना पढ़ कर मुझे अपनी लिखी एक कविता याद आ गई अभी खिसकना सीखा था वक़्त ने कैसे बड़ा किया कुछ कठोर सच्चाई ने कमर तोड़ महंगाई ने नन्हे पैरों पर खड़ा किया ये हमारे देश की अन्दर की सच्चाई है हिला के रख दिया आपकी इस रचना ने

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  11. मर्मस्पर्शी रचना

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  12. मार्मिक प्रस्तुति ...जब कोई साथ नहीं होता है तो फिर समय उम्र से पहले मजबूत बना देता है ....

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  13. मार्मिक, झकझोर दिया रचना ने

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