Monday, 29 April 2013

पर तुम एक आभास ही तो हो ...


तुमको याद करना

 तुमको ढूँढना ,

हर आहट पर पलट

 कर देखना के तुम

 आ रहे हो शायद ...


पर तुम ,तुम 

तो हो ही नहीं

 एक आभास 

ही तो हो ...


मुझे यूँ भी लगता है
 ,
एक दिन तुम आओगे

 और मेरे कंधे पर धीरे 

 हाथ रखोगे

 मैं पलट कर देखूंगी ,

तुम्हे अपने सामने

 ही पाऊँगी...


मैं इसी आभास 

मैं ही रहती हूँ

 और गुम रहना भी

 चाहती हूँ ...

( चित्र गूगल से साभार )

Friday, 26 April 2013

दुविधा


दरवाजा बंद कर 
दस्तक भी
 देते हो 
गुम हो कर
 आवाज़
 भी लगाते हो ...

चुप रहने को कह 
नज़रो से सवाल
 भी करते हो 
आखिरी बार
मिलकर ,
मिलने भी चले 
आते हो ...

ये तुम बार -बार ,
हर बार ,
मुझे कैसी 
दुविधा में घुमा 
जाते हो ...

Thursday, 25 April 2013

तो ये मन कब्रिस्तान ही बन जाता है ...

जब कोई सुनने वाला न हो
 मन की बात ,
और रह जाये 
मन की मन ही में ...

खुद से खुद की ही
 बात करते रहे ,
और सुनते रहे
 खुद ही को ....

दबाते रहें अपने 
मन की बातों को ,
भर -भर के ठंडी 
सांसों से ........

भर दे मन को एक गहरी 
सीलन से ,
मार दे अपने 
मन की आवाज़ को ...

तो ये मन कब्रिस्तान ही
 बन जाता है ...

( पगडण्डीयां  में प्रकाशित )

( चित्र गूगल से साभार )

Tuesday, 23 April 2013

ऐसे राजा के राज को क्या कहिये ...!

एक देश में एक राजा
गूंगा  गुड्डा सा ,
नहीं चल सकता बिन सहारे
चलता भी तो कठपुतली सा ,
न मर्ज़ी से गर्दन घुमाता
बोल भी कहाँ पाता
मर्ज़ी से अपनी ....

 जैसा राजा होगा ,
होगी प्रजा भी तो वैसी ही ,
दोष किस्मत को या
नियति को ...

नियति को ...!
तो क्यूँ दे नियति को दोष ,
दोष  किस्मत को भी
क्यूँ दे हम ...

प्रजा ने जब ऐसी ही
नियति पायी हो
तो किस्मत में भी
तो वही पायेगी जो बोया है ...

ऐसे राजा के राज  को
क्या कहिये ...!
अंधेर नगरी , चौपट  राजा ...

ऐसे राज में प्रजा में भी कैसी
 चहुँ ओर फैली
अराजकता ,
दिशाहीन सी भटकती ,
दर -दर न्याय के लिए
लताड़ी  जाती हर जगह से ...

लिए मरा मनोबल
 प्रजा  भी
फिरती बस लाशों की
तरह ...

गर्म धरा पर बूंद उछल
कर मिट जाती क्षण में ,
कुछ ऐसे  ही
प्रजा का जोश भी मिट जाता ...

देखती एक दूसरे को शक से
केवल शोर मचाती
ढोल बजाती
आक्षेप लगाती हर किसी
दूसरे पर ....

नहीं देखा कभी झाँक कर
अपने अंतर्मन में
तलाशती बाहर रोशनी
भीतर लिए खुद के अँधेरा ...

दोषी कौन है ?
क्या राजा
या प्रजा भी ,
दोनों ही दोषी और
दोनों ही ना माने ...

ना माने अगर दोष अपना
टूटेंगी फिर
ऐसे ही कई गुड़ियाँ
भग्न होती रहेंगी
ऐसे ही प्रतिमाएँ ....













Sunday, 21 April 2013

ਹਵਾ ਚ ਲਿਖੀ ਚਿੱਠੀ ...( हवा में लिखी चिट्ठी)

ਮੈਂ ਰੋਜ਼ ,
ਉਸਨੂੰ ਇਕੱ ਚਿੱਠੀ 
ਲਿੱਖਦੀ ਹਾਂ 
ਲਿੱਖ ਕੇ ਉਸਨੂੰ
ਹਵਾ ਵਿਚ ਉਡਾ ਦਿੰਦੀ ਹਾਂ ...

ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਉਸਨੂੰ ਉੱਹ
ਚਿੱਠੀ ਮਿਲਦੀ
ਵੀ ਹੈ ਕਿ ਨਹੀਂ....


ਪਰ ਮੈਨੂ ਉਸ ਦੇ
ਜਵਾਬ ਦੀ
ਉਡੀਕ ਜਰੂਰ
ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ...

ਚਿੱਠੀ ਭੇਜਕੇ ਮੈਂ
ਕਦੇ ਇਹ ਵੀ ਸੋਚਦੀ ਹਾਂ
ਹਵਾ ਦਾ ਕਿ ਹੈ
ਉਹ ਪੁਜੇ ਯਾ ਨਾ ਪੁਜੇ
ਉਹ ਤਾਂ ਵਗਦਾ ਰੇਲਾ ਹੀ ਤਾਂ ਹੈ ...

ਮੈਂ ਇਹ ਵੀ ਸੋਚਦੀ ਹਾਂ
ਉਹ ਚਿੱਠੀ ,
ਮੈਂ ਕਿਉਂ ਨਾ
ਕਬੁਤਰ ਵਲ ਭੇਜੀ
ਉਹ ਉਸਦੇ ਥਾਂ ਲੇ ਕੇ ਤਾਂ
ਜਾਉ...

ਪਰ , ਮੈਨੂ ਕੀ ਪਤਾ ,
ਉਹ ਹੁਣ
ਕਿਥੇ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ
ਉਸ ਦਾ ਪਤਾ -ਠਿਕਾਣਾ ਵੀ ਕੀ ਹੈ
ਕਬੁਤਰ ਤਾਂ ਰੁਲ ਹੀ ਜਾਵੇਗਾ

ਇਹ ਮੇਰਾ ਸੁਨੇਹਾ ਤਾਂ ਹਵਾ ਹੀ
ਲੇ ਕੇ ਜਾਵੇਗੀ
ਹਵਾ ਕਦੀ ਆਪਣਾ ਰਾਹ
ਭਟਕਦੀ ਨਹੀ ਹੈ ...

ਮੈਨੂ ਇਹ ਯ੍ਕੀਨ ਵੀ ਹੈ
ਮੇਰੀ ਚਿਟ੍ਠੀ ਉਹ
ਜਰੂਰ ਪਡ਼ਦਾ ਹੈ
ਪਡ਼ ਕੇ ਜਵਾਬ ਵੀ ਦਿੰਦਾ ਹੈ...

ਹਵਾ ਚ ਲਿਖੀ ਚਿੱਠੀ
ਦਾ ਹਾਵਾਬ
ਹਵਾ ਹੀ ਲੈ ਕੇ ਔਂਦੀ ਹੈ...

ਇਹ ਮੈਨੂ ਹਵਾ ਦੀ ਬਦਲੀ
ਹੋਈ ਚਾਲ ਤੇ
ਮਹਕ ,
ਤੋਂ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ
ਕੀ ਉਸਨੇ ਚਿੱਠੀ ਪਡ਼ ਕੇ
ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ...

ਮੈਂ ਇੱਕ ਹੋਰ ਚਿੱਠੀ
ਹਵਾ ਚ ਉਡਾ ਦਿੰਦੀ ਹਾਂ...
.( चित्र गूगल से साभार )
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मैं रोज़ ,
उसको एक चिट्ठी
लिखती हूँ ,
लिख कर हवा में उड़ा
देती हूँ ....

पता नहीं उसे
यह चिट्टी मिलती भी
है या नहीं ...

पर मुझे उसके
जवाब का
इंतजार जरुर रहता है ...

चिट्ठी भेज कर कभी
सोचती हूँ
हवा का क्या है
क्या मालूम वह पहुंचे भी या नहीं
वह तो बहता रेला है ...

मैं यह भी सोचती हूँ
क्यूँ नहीं मैंने उसे
कबूतर को दे कर भेजा ,
वह उसके ठिकाने तक तो ले जाता ...

पर मुझे क्या मालूम उसका
पता -ठिकाना ,
अब वह कहाँ रहता है
कबूतर तो भटक ही जायेगा ...

मेरे सन्देश तो हवा ही
 ले कर जाएगी
हवा कभी अपना राह नहीं
भटकती ...

मुझे यह यकीन है
वह मेरी चिट्ठी पढता
जरुर है
पढ़ कर जवाब भी देता है ...

हवा में लिखी
चिट्ठी का जवाब
हवा ही ले कर आती है ...

यह मुझे हवा की बदली चाल और
महक से ,
पता चल जाता है
उसने चिट्ठी पढ़ कर जवाब दे दिया ...

मैं एक और चिट्ठी हवा में
उड़ा  देती हूँ ...



Thursday, 18 April 2013

शोभना ब्लॉग -रत्न "सम्मान 2012

17.04.2013 को शोभना वेलफेयर सोसाइटी (जिसके संयोजक सुमित प्रताप सिंह हैं) के तत्वाधान में गांधी पीस फ़ाउंडेशन, नई दिल्ली में आयोजित "शोभना सम्मान 2012" में "शोभना ब्लॉग -रत्न "सम्मान 2012" का पुरस्कार मुझे भी प्राप्त हुआ !!









Monday, 15 April 2013

ਇਹ ਮੇਰਾ ਦਿਲ ਚੰਦਰਾ ਹੈ ...( यह मेरा दिल पागल है ...)

ਵੇ ਚੰਨ
ਤੈਨੂ ਵੇਖ ਕੇ 
ਮੇਨੂ ਉਸਦੀ ਯਾਦ 
 ਜਾਂਦੀ ਹੈ..

ਉਸਦੀ ਸੂਰ੍ਤ  
ਤੂ ਦਿਸਦਾ ਹੈ 
ਮੇਂਨੂ ...!


ਨਾ ਤੂ ਮੇਰਾ ਹੈ 
ਨਾ ਓਹ ਵੀ ਮੇਰਾ...

ਇਹ ਰਾਜ਼  
ਚੰਦਰਾ ਦਿਲ
ਹਾਲੇ ਵੀ ਨਹੀ 
ਸਮਝਿਆ...

ਦੂਰ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ
ਦੂਰੋਂ ਹੀ ਦਿਸ੍ਣ ਵਾਲੇ
ਕਦੇ ਅਪਣੇ ਵੀ ਹੁੰਦੇ ਹੈ ?
ਇਹ ਗਲਮੇਰਾ
ਚੰਦਰਾ ਦਿਲ 
ਸਮਝਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ...

ਇਹ ਮੇਰਾ ਦਿਲ
ਚੰਦਰਾ ਹੈ 
ਤੇ
ਚੰਦਰਾ ਹੀ ਰਵੇਗਾ...

ਤੇਨੁ ਵੇਖਣ ਦੇ ਸੋ 
ਬਹਾਨੇ ਕਢ ਕੇ 
ਉਸਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨਾ 
ਵੀ ਤਾਂ
ਨਹੀ ਭੁਲੇਗਾ...
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ओ चाँद 
तुझे देख कर 
मुझे उसकी याद 
आ जाती है ...

उसकी सूरत  में 
तू  दिखाई देता है 
मुझे ...

ना तू मेरा है 
ना ही वो मेरा है ...

यह राज़  अभी भी 
यह पागल दिल 
नहीं समझा ...

दूर रहने वाले 
दूर से ही दिखने वाले 
कभी अपने हुए है क्या ?
यह बात , मेरा 
पागल दिल समझना 
नहीं चाहता ...

यह मेरा दिल पागल है ,
पागल ही 
रहेगा ...

तुझे देखने के 
सौ बहाने 
निकाल कर , उसे 
याद करना भी नहीं भूलेगा ....

( चित्र गूगल से साभार )



अब तो यही अरदास है , हे प्रभु ...!

जीवन की ढलती संध्या 
देख गहराता अँधेरा 
बाहर कम भीतर अधिक 
अब एक तुझे ही पुकारता मन...

हे प्रभु ....!

तेरे इस असार -संसार में
हमने कुछ न किया
,ना तुझे याद किया ,
न ही प्राणी मात्र के लिए
ना ही प्रयास किया
मानवता को बचाने का....

बस किया तो यही एक काम
,बाँट दिया एक इन्सान को
दूसरे से....


अब जीवन की ढलती सांझ में 
साल रहा है बस यही भय 
क्या मुहं ले कर आऊं पास तेरे....

अब तो यही अरदास है 
हे प्रभु ...!
दे दो मुझको 
बस एक ही मौका ,
तेरी हर कसौटी पर
खरा उतर के मैं दिखलाऊं ....


( चित्र गूगल से साभार )

Sunday, 14 April 2013

कुछ वादे तुमने किए थे .......

प्रिय 
कुछ वादे तुमने किए थे 
और कुछ वादे
मैंने भी किये थे तुमसे 
थाम एक दूसरे का हाथ ,
मान अग्नि को साक्षी ...

कुछ वादे किए थे मैंने
अपने आप से
तुम्हारे लिए
मान अपने अंतर्मन को साक्षी ...

साथ तुम्हारा कभी न छोडूंगी
कभी अनुगामिनी तो
कभी सहगामिनी बन
साथ चलूंगी सदा ....

अंधियारे राह में
मुझे ही पाओगे साथ सदा ही
रहूंगी खड़ी तुम्हारी राहों में
बन रोशनी की किरण .......

यही वादा निभाया भी है मैंने
जो किया था मैंने ,
मान अपने अंतर्मन को साक्षी .......

Friday, 12 April 2013

मैं अक्सर तुम्हारी तस्वीर में अपने रंग खोजती हूँ ...


दो कजरारी आंखे
 झपकते हुए ,
मैं अक्सर 
तुम्हारी तस्वीर में
अपने रंग  खोजती हूँ ...
वे रंग 
जो  कभी मैंने 
तुम्हें दिए थे ,
उनका क्या हुआ ...!
सागर की सी 
गहराई लिए दो आँखे ,
एक टक देखते हुए ...
हाँ वो रंग,
 अभी भी मेरे पास है और 
बहुत प्रिय भी ...
 पर 
वे  रंग चाह कर भी मैं ,
मेरे जीवन के केनवास 
पर नहीं उतार पाता...
उन रंगों को
 मैंने 
नज़रों में बसा कर 
 रखा है ...
जब भी आइना
 देखता हूँ 
तुम्हारा अक्स ढूंढ़ता  हूँ ...
कजरारी आँखें 
बरस पड़ी ,
सागर सी गहराई वाली 
आँखों की गहराई
 कुछ और गहरी हो गयी ....

Wednesday, 10 April 2013

पर मैं अगले जनम में चिड़िया बनना चाहती हूँ .......



उसने धीमे कहा 
क्या अगले जनम में भी 
साथ निभाओगी ...

हाँ शायद !
पर मैं  अगले जनम में
 चिड़िया बनना
चाहती हूँ ,
वो कुछ सोचते हुए बोली ...

इस सुनहरे पिंजरे से 
दूर उन्मुक्त
गगन में उड़ना 
चाहूंगी ...

तुम मुझे कैसे 
पहचानोगे तब ...!

हाँ पहचान लूँगा 
मैं ...!
इस सुनहरे पिंजरे की
आभा  से ,
तुम्हारे परों पर
 तब भी होगी
और
तुम्हारी आवाज़ से  ,
जो अभी भी चिड़िया
 की तरह ही है ...

जब मैं  हाथ बढाऊँ 
तुम मेरी हथेली पर आ
बैठना 
उसने अपनी आँखों की
चमक बढ़ाते हुए 
धीरे से फिर कहा ...

Tuesday, 9 April 2013

तुम मुझसे ना छुपा पाओगे ...


वेश बदल कर
मिलोगे
आहटें  न
बदल पाओगे ..

लब सिल कर रखोगे
नज़रों
 का बोलना ना
छुपा पाओगे  ...

चलते -चलते राह
बदल दोगे
पगडंडियाँ  ना
छोड़ पाओगे ...

मिलोगे भी नहीं
बात भी नहीं करोगे
सपने में आना  ना
छोड़ पाओगे ...

तुम से मैं हूँ
 मुझ से तुम हो
हर बात मुझसे जुडी है
तुम मुझसे ना
छुपा पाओगे ...

( चित्र गूगल से साभार )

Monday, 8 April 2013

वैसे तुम कहाँ हो अब ...


तुमने कहा
जैसे मैं तुम्हे देखती हूँ
तुम वैसे ही हो ...

लेकिन
जैसे मैं देखती हूँ
वैसे तुम कहाँ हो अब ...

समय बदल जाता है
मौसम बदल जाते है
दिन भी तो
एक जैसे कहाँ रहते हैं ...

एक दिन में भी तो कई
प्रहर होते हैं
हर प्रहर का भी तो
मौसम होता है
तासीर होती है ...

फिर तुम वैसे ही कैसे
रह सकते हो
जैसा मैं देखना चाहती हूँ ...

मौसम की तरह तुम भी
 बदले हो
नज़र ना बदली हो चाहे
नजरिया बदल कर
नज़रें तो फेर  ही ली तुमने ....

समय का फेर ही कहोगे तुम
इसे
मैं कहूँगी तुम्हारे मन का फेर ,
लेकिन इसे ...

फिर तुम कैसे कह सकते हो
जैसे मैं देखती हूँ
तुम वैसे ही हो ...





Saturday, 6 April 2013

बस प्रभु मेरा यही सन्देश तेरे नाम .......

ईश्वर के नाम 
सन्देश एक किसान का ....

बोता हूँ बीज जब भी 
ना केवल बीज ही 
हर बीज के साथ कितनी 
ही आशाओं को भी बो देता हूँ ...

धरती से निकलता
एक -एक अंकुर
है एक विश्वास -भरोसा
मेरी उम्मीदों का......

मेरा यही सन्देश है प्रभु
रखना जरा ध्यान ,
आलसी मेघों को भेज
देना जरा समय से ......


जरुरत होती है उनकी
सोये रहते है कुम्भकर्णी
निद्रा में मग्न ..

कभी कर देते हैं
फलती - फूलती, लहलहाती
मेरी आशाओं
को जलमग्न 

बेरुत जाग कर  ...

थोडा रखना उनकी थाम कर लगाम 
बस प्रभु मेरा यही सन्देश 
तेरे नाम .......

Friday, 5 April 2013

बड़े अच्छे लगते है .........



एक वो था जो
 सांसों में बसा था ,
एक ये जिसके 
नाम से सांसे 
चलती है ...........
एक वो था जिसने 
कभी कदमो में 
फूल बिछाये थे ,
और इसने मेरा 
दामन ही फूलों 
से भर दिया ..........
एक वो था जिसने
 नज़रों से भी न
छुआ था ,

और इसके स्पर्श 
ने ही मुझे सोना 
बना दिया .......
.कभी उसने गा
 कर कहा था ,
बड़े अच्छे लगते है 
और इसका मौन ही 
गुनगुनाता रहता 
है  ......
बड़े अच्छे लगते है .........



Thursday, 4 April 2013

आज तुम नहीं हो .......


आज तुम नहीं हो तो

क्या सूरज नहीं निकला 
,
पर उसमे वो चमक ही कहाँ ..........

आज तुम नहीं हो तो

क्या फूल नहीं खिला 
,
पर उसमे वो महक ही कहाँ ........

जब तुम नहीं हो तो सब हो


कर भी कुछ नहीं होता

 ......
ना सूरज में चमक ना हवाओं


में महक और आज तुम नहीं


हो तो मेरी आँखों में भी वो


नूर कहाँ .................

Wednesday, 3 April 2013

सरिता का हठ ...!




सागर का  खारापन 
सरिता का घुलता अस्तित्व,
हारी सरिता 
हठ  पर उतर आयी .......

सागर का अनुनय 
गर घुलती रही 
सरिता उसमे ,
सानिंध्य उसका 
सागर को भी मीठा कर देगा 
 सरिता की मिठास से
छोड़ देगा अपना खारापन ..

सरिता का हठ ...!

अपनी पहचान बनाने का 
धरा की कठोरता 
गगन की तपिश ना 
रोक पाएगी उसे ....

सागर की फैली बाहों को
 कर अनदेखा 
बस चली,इठलाती
अपनी नयी डगर पर .......

 सागर के बिन सरिता का
 अस्तित्व भी क्या ...!

जरा सी तपिश ना  सहन हुई
कुम्हलाई , 
मुरझाई सरिता ...

मुड़ कर देखा जो 
एक बार फिर से 
सागर भीगी आँखे लिए 
बाहें फैलाये 
प्रतीक्षा में था उसकी 
अभी भी ...

सरिता फिर से मुड़ चली
सागर से मिलने ..........