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Wednesday, 8 March 2017

एक दिन

एक दिन
थम गई थी
घूमते-घूमते
जब धरा,

उस दिन
रुक गई थी
सहसा ही
चलते-चलते
जब हवा,

उसी दिन ही
सिमटा सा लगा
दूर तक फैला ,
आसमां..

ऐसे खामोश
थमे,रुके, सिमटे
जहां में
वह कैसा जलजला था ,
डगमगाए जाता था
मुझे...

शायद
स्पंदन थी
मेरे ह्रदय की
जो कंपन बनी थी
या कुछ और था..!