रोज़ चाँद को निहारना
उसका इंतजार करना
जैसे तुम्हारे आने की ही
राह ताकना
जिस दिन
चाँद नहीं आता
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
उस दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही
तुम भी चाँद की तरह ही तो हो
ना मालूम ,
मैं
चाँद की राह ताकती हूँ या
तुम्हारी ,
चंद्रमा की बढती-घटती कलाओं के साथ
झूलती रहती हूँ
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
जिस राह से तुम कभी नहीं आओगे
चाँद तो अमावस के बाद आता है
और तुम !
शायद हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे
फिर भी चाँद के साथ
इंतजार तो करती ही हूँ ....
बहुत सुंदर
ReplyDeleteVery nice 👍
ReplyDeleteइंतजार कभी न खत्म होने वाला सिलसिला...
ReplyDeleteपर जीने की उम्मीद भी है...
सुंदर रचना।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteविरह का हृदय स्पर्शी चित्रण चांद के माध्यम से।
ReplyDeleteअप्रतिम लेखन।
सुन्दर
ReplyDeleteवियोग का मर्म स्पर्शी चित्रण
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteओह! प्रतीक्षा के पल कितने जानलेवा होते हैं ये जाने वाला कोई निष्ठुर क्या जाने 👌👌👋
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