कान्हा एक बार वंशी फिर से बजा दो ...वह धुन छेड़ो ,जिसे सुन कर हर कोई मंत्रमुग्ध सा हो रहे ...
किसी को कोई सुध-बुध
ही ना रहे ....
इस धरा का कण- कण ,
तुम्हारी वंशी की तान में
मोहित सा,
मंत्रमुग्ध हो रहे...
ऐसी ही कोई तान छेड़ो .
कान्हा ...!
मैं चली आऊं,
तुम्हारी वंशी की मधुर तान
की लय पर बहती हुयी .....
आभार यशोदा जी ..
ReplyDeleteसुंदर भाव रचना..
ReplyDelete:-)
कान्हा का यही चरित्र सबको भाता है
ReplyDeleteसुन्दर भाव..
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteबेहतरीन भाव सुन्दर रचना
ReplyDeleteउत्कृष्ट भाव सुंदर रचना,,,,
ReplyDeleteअनुपम भाव लिये मन मोहती रचना
ReplyDeleteमनमोहक रचना .....
ReplyDeleteउपासना जी ...भावपूर्ण भक्तिमय प्रस्तुति
ReplyDeleteभक्तिमय रचना .....
ReplyDeleteसमर्पण भाव में सराबोर रचना आभार
ReplyDeletekanha ki bansi sabka man moh leti hai....bhavpurn
ReplyDeleteकितने मधुर क्षणों की कल्पना कर रही हैं !
ReplyDelete