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Thursday, 25 October 2012

कान्हा वंशी फिर से बजा दो ...

कान्हा एक बार 
वंशी फिर से बजा दो ...
वह धुन छेड़ो ,
जिसे सुन कर 
हर कोई मंत्रमुग्ध सा 
हो रहे ...
किसी को कोई सुध-बुध
ही ना रहे ....
इस धरा का कण- कण ,
तुम्हारी वंशी की तान में
मोहित सा,
मंत्रमुग्ध हो रहे...
ऐसी ही कोई तान छेड़ो .
कान्हा ...!
मैं चली आऊं,
तुम्हारी वंशी की मधुर तान
की लय पर बहती हुयी .....

14 comments:

  1. आभार यशोदा जी ..

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  2. कान्हा का यही चरित्र सबको भाता है

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  3. बेहतरीन भाव सुन्दर रचना

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  4. उत्कृष्ट भाव सुंदर रचना,,,,

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  5. अनुपम भाव लिये मन मोहती रचना

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  6. उपासना जी ...भावपूर्ण भक्तिमय प्रस्तुति

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  7. भक्तिमय रचना .....

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  8. समर्पण भाव में सराबोर रचना आभार

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  9. kanha ki bansi sabka man moh leti hai....bhavpurn

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  10. कितने मधुर क्षणों की कल्पना कर रही हैं !

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