पुरानी किताबें सहेजते
अटक गयी नज़रे
दिख गयी वही लाल -डायरी
जिसमे लिखा था मैंने
मुझी पर की गयी
शिकायते ,
लानते ,
कुछ उलाहने
मेरे पिता की मजबूरियों ,
मेरे निकम्मेपन पर
अटक गयी नज़रे
दिख गयी वही लाल -डायरी
जिसमे लिखा था मैंने
मुझी पर की गयी
शिकायते ,
लानते ,
कुछ उलाहने
मेरे पिता की मजबूरियों ,
मेरे निकम्मेपन पर
की गयी टीका - टिप्पणियां ..
आज उन सबकी
समीक्षा कर डाली गयी
सभी बातों को
जहन में नोट कर लिया गया ...
जवान होते बेटे को देख
कुछ तैयारियां
मैंने भी कर डाली ...
आज उन सबकी
समीक्षा कर डाली गयी
सभी बातों को
जहन में नोट कर लिया गया ...
जवान होते बेटे को देख
कुछ तैयारियां
मैंने भी कर डाली ...
देख डायरी के पन्ने, मन में उठे हिंडोले ।
ReplyDeleteक्या-क्या था हमने लिखा, देख के फिर मन डोले ।।
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
वाह …………काफ़ी हद तक सही है खुद के आईने मे खुद को निहारना
ReplyDeleteअपने जीवन के अनुभवों ही बच्चों के काम आती है,
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
इसे ही कहते हैं "जीवन चक्र" बच्चों की गतिविधियाँ, उनकी हरकतें याद कराती हैं अपने खुद का अतीत
ReplyDeleteबीता हुआ बचपन……… सुंदर्…।
जीवन को समेटती रचना , हम जो पाते हैं वही लौट जाता है
ReplyDeleteस्वयं को आईने में देख समीक्षा करना भविष्य को सुखद बना सकता है !
ReplyDeleteबहुत उम्दा...शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर पोस्ट |
ReplyDeleteकई बार,समय दोहराता है खुद को। बस,ग़लतियां न दुहराई जाएं।
ReplyDeleteउपासना जी
मन की डायरी में अंकित बहुत सारी बातें
उम्र के किसी पड़ाव पर फिर से सामने अवश्य आती है …
भावनाओं को उद्बवेलित करती हुई रचना !
शुभकामनाओं सहित…
"देख डायरी के पन्ने मैंने अपना भूत निहारा
ReplyDeleteबेटा हुआ सयाना, उसका कल इसलिए संवारा"