एक गृहिणी
जब कलम उठाती है ...
लिखती है वह
खिलते फूलों पर
उगते सूरज पर
नन्ही किलकारियों पर
मासूम मुस्कानों पर ...
वह लिखती है
ममता की स्याही में
कलम को डुबो कर ....
लेखनी में उसकी
उमड़ पड़ता है ढेर सारा
प्यार , दुलार और
बहुत सारा स्नेह ,
सारी प्रकृति खिल उठती है ....
एक गृहिणी ,
एक नारी भी है
एक माँ भी है ......
क्या लिखे वह अपनी
कलम से
दूसरी नारी की व्यथा
एक बेटी की दुर्दशा ...!
नहीं ,वह उठा ही नहीं
पाती कलम
दर्द की स्याही से
' स्याह ' अक्षर नहीं लिख पाती ...
जब कलम उठाती है ...
लिखती है वह
खिलते फूलों पर
उगते सूरज पर
नन्ही किलकारियों पर
मासूम मुस्कानों पर ...
वह लिखती है
ममता की स्याही में
कलम को डुबो कर ....
लेखनी में उसकी
उमड़ पड़ता है ढेर सारा
प्यार , दुलार और
बहुत सारा स्नेह ,
सारी प्रकृति खिल उठती है ....
एक गृहिणी ,
एक नारी भी है
एक माँ भी है ......
क्या लिखे वह अपनी
कलम से
दूसरी नारी की व्यथा
एक बेटी की दुर्दशा ...!
नहीं ,वह उठा ही नहीं
पाती कलम
दर्द की स्याही से
' स्याह ' अक्षर नहीं लिख पाती ...
बस महसूस करती है .... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeletekyoki vo bahut kuch mahsus karti hai aur dard ko apne paas hi rakhti hai
ReplyDeleteकैसे कुछ लिखे वो इस दर्द के साथ ...... सुंदर रचना
ReplyDeleteवह सब लिखते जी फटता है -जो दूसरों के दुष्कृत्यों की पीड़ा भोग रही है रह-रह कर उसके दर्द का एहसास चैन नहीं लेने देता .यह सब देख-सह कर अगर नारी का स्वभाव बदल जाये तो जिम्मेदार कौन ?
ReplyDelete....उफ्फ :-(
ReplyDeleteबेटी की दुर्दशा पर तलवार उठाती
ReplyDeleteखुद नहीं लड़ी कभी
लेकिन बेटी को लड़ना
सिखाती है
जीवन का हर संघर्ष
उसे समझाती है
खुद कमजोर सही लेकिन
बेटी को बहादुर बनाती है
वो सिर्फ एक ग्रेह्नी थी
बेटी को जिन्दगी का सच
समझाती है .....रमा
उसी गृहणी का अंगार में कलम डुबो कर लिखने का वक़्त आ गया सहनशीलता की हदें लांघ चुका है नारी अस्तित्व ,भावनाओं को कोमलता से व्यक्त करती हुई रचना हेतु बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बस महसूस कर सिहर उठती है..
ReplyDeleteउस बहन ,बेटी की चीख उसकी पीड़ा को...
बेहद मार्मिक रचना...
मां का दर्द...लेकिन कलम तो उठनी होगी...
ReplyDeleteअपने लिए, अपनी बेटी और अपने बच्चों के लिए, नारी पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ना ही होगा...
मन की भावनाओं को कोमलता से व्यक्त करती सुंदर रचना,,,, बधाई उपासना जी,,,
ReplyDeleterecent post : समाधान समस्याओं का,
गृहिणी की कलम से अंगार , थोडा मुश्किल तो है !
ReplyDeleteशब्द सक्षम है अनुभूति को व्यक्त करने में !
वह उठा ही नहीं पाती कलम
ReplyDeleteदर्द की श्याही से
स्याह अक्षर नहीं लिख पाती