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Tuesday, 4 December 2012

कुछ तैयारियां ...

पुरानी किताबें सहेजते 
अटक गयी नज़रे 
दिख गयी वही लाल -डायरी 
जिसमे लिखा था मैंने 
मुझी पर की गयी 
शिकायते ,
लानते ,
कुछ उलाहने 
मेरे पिता की मजबूरियों ,
मेरे निकम्मेपन पर 
की गयी टीका - टिप्पणियां ..
आज उन सबकी
समीक्षा कर डाली गयी
सभी बातों को
जहन में नोट कर लिया गया ...
जवान होते बेटे को देख
कुछ तैयारियां
मैंने भी कर डाली ...

11 comments:

  1. देख डायरी के पन्ने, मन में उठे हिंडोले ।
    क्या-क्या था हमने लिखा, देख के फिर मन डोले ।।

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  2. वाह …………काफ़ी हद तक सही है खुद के आईने मे खुद को निहारना

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  3. अपने जीवन के अनुभवों ही बच्चों के काम आती है,

    recent post: बात न करो,

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  4. इसे ही कहते हैं "जीवन चक्र" बच्चों की गतिविधियाँ, उनकी हरकतें याद कराती हैं अपने खुद का अतीत
    बीता हुआ बचपन……… सुंदर्…।

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  5. जीवन को समेटती रचना , हम जो पाते हैं वही लौट जाता है

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  6. स्वयं को आईने में देख समीक्षा करना भविष्य को सुखद बना सकता है !

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  7. बहुत उम्दा...शुभकामनाएँ..

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  8. बहुत ही सुन्दर पोस्ट |

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  9. कई बार,समय दोहराता है खुद को। बस,ग़लतियां न दुहराई जाएं।

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  10. उपासना जी

    मन की डायरी में अंकित बहुत सारी बातें
    उम्र के किसी पड़ाव पर फिर से सामने अवश्य आती है …

    भावनाओं को उद्बवेलित करती हुई रचना !
    शुभकामनाओं सहित…

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  11. "देख डायरी के पन्ने मैंने अपना भूत निहारा
    बेटा हुआ सयाना, उसका कल इसलिए संवारा"

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