Monday, 31 August 2015

खिल जाएगी यह धरा ....

प्रेम के जो बीज,
मुट्ठी में बंद किए थे,
वे बीज दिए मैंने
सूनी , उदास धरा पर ।

रंग भरे
प्रेम के बीज
खेत की मेंढ पर
एक -एक कर के
बीज दिए है ।

कुछ यूँ ही
हथेली में रख
धरा पर
बिखरा दिए ।

एक दिन जरूर
नवांकुर फूटेंगे
रंग भरे बीजों से
खिल जाएगी यह धरा ।

एक-एक मेंढ
खिलेगी प्रेम के रंगों से,
खिले रंगों के ,
रंग भरी
चूनर ओढ
खिलखिला पड़ेगी यह धरती भी ।

6 comments:

  1. कुछ यूँ ही
    हथेली में रख
    धरा पर
    बिखरा दिए ।

    एक दिन जरूर
    नवांकुर फूटेंगे
    रंग भरे बीजों से
    खिल जाएगी यह धरा ।
    आशा ही जीवन को सम्बल देती है ! सुन्दर प्रस्तुति

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  2. प्रेम के बीज
    मुट्ठी में बंद किए थे
    वे बीज दिए मैंने
    सूनी , उदास धरा पर ।
    बहुत सुंदर..भाव पूर्ण रचना..

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  3. एक-एक मेंढ
    खिलेगी प्रेम के रंगों स,े
    बिखरे बीजों से
    रंग भरी
    चूनर ओढ
    खिलखिला पड़ेगी यह धरती भी ।
    बहुत सुन्दर.

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  4. निराशा में आशा के बीज बोती कविता
    सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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  5. एक दिन जरूर
    नवांकुर फूटेंगे
    रंग भरे बीजों से
    खिल जाएगी यह धरा ।

    आखिर सपने ही सच होते हैं. सुंदर प्रस्तुति.

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