बरसों बाद
किताबों में दबा
एक मुड़ा-तुड़ा एक कागज़
का टुकड़ा मिला ..
खोल कर देखा
याद आया ,
ये तो वही ख़त है
जो मैंने लिखा
था उसको...
हाँ ये मेरा
लिखा हुआ था
प्यार भरा ख़त ..
या कहिये
मेरा पहला प्रेम-पत्र ,
जो मैंने उसे कभी दिया ही नहीं ...
लिखा तो बहुत था
उसमें
जो कभी उसे
कह ना पायी ...
लिखा था
क्यूँ उसकी बातें
मुझे सुननी अच्छी लगती है
और उसकी बातों के
जवाब में
क्यूँ जुबां कुछ कह नहीं पाती ..
और ये भी लिखा था
क्यूँ मुझे
उसकी आँखों में अपनी छवि
देखनी अच्छी लगती है ..
लेकिन
नजर मिलने पर क्यूँ
पलकें झुक जाती है ...
आगे यह भी लिखा था
क्यूँ
मैं उसके आने का
पल-पल
इंतज़ार करती हूँ..
और उसके आ जाने पर
क्यूँ
मेरे कदम ही नहीं उठते ...
रात को जाग कर लिखा
ये प्रेम-पत्र ,
रात को ही ना जाने कितनी
बार पढ़ा था मैंने ...
न जाने कितने ख्वाब सजाये थे मैंने ,
वो ये सोचेगा ,
या मेरे ख़त के जवाब में
क्या जवाब देगा ....!
सोचा था
सूरज की पहली किरण
ह मेरा ये पत्र ले कर जाएगी ..
लेकिन
उस दिन सूरज की किरण
सुनहली नहीं
रक्त-रंजित थी ...!
मेरे ख़त से पहले ही
उसका ख़त
मेरे सामने था ...
लिखा था उसमें,
उसने सरहद पर
मौत को गले लगा लिया ...
और मेरा पहला प्रेम-पत्र
मेरी मुट्ठी
में ही दबा रह गया बन कर
एक मुड़ा-तुड़ा कागज़ का टुकड़ा...
awsm lines mam...
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा सखी ...
ReplyDeleteमेरी प्रेयसी
ReplyDeleteमें लड़ रहा हूँ यहाँ
सरहद पर
अपने देश के लिए
दिन कट जाता है मेरा
सरहद पर गश्त में
बारूद की गिनती में
बंकर की खुदाई में
थक कर जब आता हूँ डेरे पर
उस मुचड़े कागज पर
लिखे तेरे लफ्जों की तहरीर ....
खोजता हूँ .रात भर
जो तुने लिखी ही नही
और मैंने पढ़ भी ली
.. एक सिपाही हूँ
मेरे जीवन आज है
कल हो न हो
या बरसो तक हो
बस यही सोच
हर रात तुझे आभास समझ कर
लिपट जाता हूँ ......
जी लेता हूँ पलभर में
उस हर जुनूनी लम्हे को ...
जो तुने कभी सोचा ही नही
और मैंने कभी कहा भी नही
में लौट पाऊं भी या नही
तेरे मुकाम पर......
तुम जंग की आखरी खबर के
बस तीन पहर इंतज़ार करना ,
लौट आया तो कोई न रोक पायेगा
तुझे मेरी होने से
जो न आया न इस सरजमीं का क़र्ज़ चूका कर
मैं बस एक बार
मेरे हर सामान में
अपनी बसी खुशबू चुपके से
उठा ले जाना ........
कोई न जाने के मैं ,
तुझ में ही बसता था,
हर रात
और उसके आखिरी पहर तक....................Neelima .
. upasana tumhara pahla prempatra poem parh kar man mai kuch bhav uthe so yaha likh daale hai hope aapko pasand aaye
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteसुन्दर से प्रेम पत्र का दर्दभरा अंत नहीं होना
ReplyDeleteचाहिए था...
हृदयस्पर्शी......
मार्मिक रचना....
बढिया भाव………अच्छी रचना
ReplyDeleteजब कहना है कहिये मौके का इंतज़ार मत करिए बीता हुआ समय फिर लौटकर कहाँ आता है प्रेम तो इश्वर का प्रतिक है उसकी अभिव्यक्ति में क्या विचार करना , मर्यादा बनाकर हम सबसे प्रेम ही करें .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है उपासना सखी ....
ReplyDeleteअफ़सोस पत्र अपने पते पर पहुँच नहीं पाया
ReplyDeleteकुछ बातें दिल की दिल में रह जाती हैं फिर एक कसक निकलती है दिल से 'काश' के साथ
ReplyDeleteमार्मिक !अन्तस् को द्रवित कर दिया ...
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