Tuesday, 24 July 2012

हमारा प्रेम


हमारा प्रेम
मुझे पानी के बुलबुले
जैसा ही लगता है ........
ऐसा जैसे थोड़ी सी ठेस लगी
और गुम........
इसलिए मैंने इसे एक छोटी सी
 कांच की पटारी में छुपा कर ,
सहेज कर  रख दिया  है ......
जब - तब तुम्हें देखने का मन
करता है ....
ये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
तुम्हारे साथ -साथ
सारा जहाँ नज़र आता है ........
चल पड़ती हूँ
तुम्हारा हाथ थाम .............
पर कभी डर भी लगता है क्या वो
दिन भी आ जायेगा कभी
ये पटारी खोलूंगी और
आस-पास की गरम हवाएं
इसे उड़ा ही ना ले जाये .....
इसे खोलने से पहले
मैं , उन गरम हवाओं को
अपने आंसुओं से नम किये
रखती हूँ ..........

11 comments:

  1. उन गरम हवाओं को
    अपने आंसुओं से नम किये
    रखती हूँ .
    वाह !! क्या कह दिया ......उपासना जी .......बहुत बढ़िया

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  2. सचमुच ! ये नमी खूबसूरत है .......

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  3. ये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
    तुम्हारे साथ -साथ
    सारा जहाँ नज़र आता है ........
    चल पड़ती हूँ
    तुम्हारा हाथ थाम ......

    खुबसूरत अंदाज़ जीने का वाह .

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  4. जब - तब तुम्हें देखने का मन
    करता है ....
    ये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
    तुम्हारे साथ -साथ
    सारा जहाँ नज़र आता है ........
    khubsurat aihasaas

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  5. साथी ऐसा चाहिए, जीवन भर साथ निभाय
    सुख दुख में साथ दे, जनम सफल हो जाये,,,,,

    बहुत सुंदर रचना,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

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  6. अद्भुत प्रेम है ये और अद्भुत होते हैं हमरे एहसास .....बहुत बढिया ...

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  7. Bahut khoob Rachna.....ek ahsaas

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  8. बहुत खुबसूरत लगी पोस्ट.....जज्बात पर आने का शुक्रिया.....आपका ब्लॉग पसंद आया.....आज ही फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे।

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  9. वेरी केयरिंग

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