हमारा प्रेम
मुझे पानी के बुलबुले
जैसा ही लगता है ........
ऐसा जैसे थोड़ी सी ठेस लगी
और गुम........
इसलिए मैंने इसे एक छोटी सी
कांच की पटारी में छुपा कर ,
सहेज कर रख दिया है ......
जब - तब तुम्हें देखने का मन
करता है ....
ये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
तुम्हारे साथ -साथ
सारा जहाँ नज़र आता है ........
चल पड़ती हूँ
तुम्हारा हाथ थाम .............
पर कभी डर भी लगता है क्या वो
दिन भी आ जायेगा कभी
ये पटारी खोलूंगी और
आस-पास की गरम हवाएं
इसे उड़ा ही ना ले जाये .....
इसे खोलने से पहले
मैं , उन गरम हवाओं को
अपने आंसुओं से नम किये
रखती हूँ ..........
उन गरम हवाओं को
ReplyDeleteअपने आंसुओं से नम किये
रखती हूँ .
वाह !! क्या कह दिया ......उपासना जी .......बहुत बढ़िया
सचमुच ! ये नमी खूबसूरत है .......
ReplyDeleteये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
ReplyDeleteतुम्हारे साथ -साथ
सारा जहाँ नज़र आता है ........
चल पड़ती हूँ
तुम्हारा हाथ थाम ......
खुबसूरत अंदाज़ जीने का वाह .
जब - तब तुम्हें देखने का मन
ReplyDeleteकरता है ....
ये पटारी खोल लेती हूँ और इसमें ,
तुम्हारे साथ -साथ
सारा जहाँ नज़र आता है ........
khubsurat aihasaas
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Deleteसाथी ऐसा चाहिए, जीवन भर साथ निभाय
ReplyDeleteसुख दुख में साथ दे, जनम सफल हो जाये,,,,,
बहुत सुंदर रचना,,,,,बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
अद्भुत प्रेम है ये और अद्भुत होते हैं हमरे एहसास .....बहुत बढिया ...
ReplyDeleteBahut khoob Rachna.....ek ahsaas
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत लगी पोस्ट.....जज्बात पर आने का शुक्रिया.....आपका ब्लॉग पसंद आया.....आज ही फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे।
ReplyDeleteवेरी केयरिंग
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