यह जिन्दगी,
बंधी है , सम्भाली सी
एक नियत दायरे में ,
या
खुल कर
बिखरने को आतुर है ।
चुप रहें ,
बात करें ,
हंसे या
मुस्कुराएं....
सही राह
चलते रहना है
या
नई पगडंडियां भी
आजमाना है ।
यह जिंदगी,
बदहवास सी
भटकन ही तो है !
।
यह जिंदगी,
ReplyDeleteबदहवास सी
भटकन ही तो है !बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/09/34.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह्ह..बहुत सुंदर कविता👌
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteनई पगडंडिया भी
ReplyDeleteआजमाना है....
बहुत खूब...