बात एक रात की। एक सच्ची घटना पर आधारित है ये कविता। 1971 में जब हिंदुस्तान और पाकिस्तान का युद्ध हुआ था। उन्ही दिनों की एक रात की बात है। मेरी माँ हैम तीन बहनों के साथ अपने मायके में ही थी। वह ज़िद कर रही थी कि वह हम तीनो को एक साथ एक ही चारपाई पर लेकर सोएगी। तब मैं तीन साल की ही थी। बड़ी दीदी मीनाक्षी 6 साल और छोटी पूजा मात्र चार माह की। माँ के मुख से कई बार सुनी ये घटना कब काव्य का रूप ले लिया। मालूम ही नहीं चला।
बात एक युद्ध के
बादलों से बरसते बमों की
काली रात में
प्यार और ममता की है ...
जहाँ एक माँ ने ,
एक दूसरी माँ को अपनी
तीन बच्चियों के साथ
लगभग सिकुड़ कर
सोते देखा तो पूछ बैठी …
कि ऐसे क्यूँ कर रही हो ?
दूसरी माँ सहमते हुए से
बोली बमों की बारिश में
कही कोई बम इधर भी
आ गिरा तो हम सब
एक साथ ही जाएँगी ...
पहली माँ हंस पड़ी
अरी,फिर बचेगा
तो कोई भी नहीं ,
लाओ एक बच्ची को
मुझे देदो ,
पर दूसरी माँ
अपनी बच्चियों को
अपने में समेटते ,सहलाते
हुए बोली नहीं -नहीं ...
पहली माँ ने बड़े दुलारते हुए
कहा चल मैं भी
आज तेरे साथ ही सोती हूँ ,
हैरान होती हुए
दूसरी बोली, क्यूँ तुम क्यूँ ?
पहली माँ बोली अरी !!
मैं भी तेरी माँ हूँ ,
क्या मै तेरे बिन जी पाउंगी
भला ...!
उस रात बारिश तो हुई थी
पर
बमों की नहीं ,
प्यार की - ममता की
जिसमे भीगती रही दो माएं
और
उनकी चार बेटियां ,
सारी रात .........
( "स्त्री हो कर सवाल करती है " में प्रकाशित )
बात एक युद्ध के
बादलों से बरसते बमों की
काली रात में
प्यार और ममता की है ...
जहाँ एक माँ ने ,
एक दूसरी माँ को अपनी
तीन बच्चियों के साथ
लगभग सिकुड़ कर
सोते देखा तो पूछ बैठी …
कि ऐसे क्यूँ कर रही हो ?
दूसरी माँ सहमते हुए से
बोली बमों की बारिश में
कही कोई बम इधर भी
आ गिरा तो हम सब
एक साथ ही जाएँगी ...
पहली माँ हंस पड़ी
अरी,फिर बचेगा
तो कोई भी नहीं ,
लाओ एक बच्ची को
मुझे देदो ,
पर दूसरी माँ
अपनी बच्चियों को
अपने में समेटते ,सहलाते
हुए बोली नहीं -नहीं ...
पहली माँ ने बड़े दुलारते हुए
कहा चल मैं भी
आज तेरे साथ ही सोती हूँ ,
हैरान होती हुए
दूसरी बोली, क्यूँ तुम क्यूँ ?
पहली माँ बोली अरी !!
मैं भी तेरी माँ हूँ ,
क्या मै तेरे बिन जी पाउंगी
भला ...!
उस रात बारिश तो हुई थी
पर
बमों की नहीं ,
प्यार की - ममता की
जिसमे भीगती रही दो माएं
और
उनकी चार बेटियां ,
सारी रात .........
( "स्त्री हो कर सवाल करती है " में प्रकाशित )
Bahut hi marmik pal
ReplyDeleteमाँ की ममता ऐसी ही होती है.. बहुत नार्मिक.. मेरी नी पोस्ट पर आप का स्वागत है..अभिव्यंजना में 'आमा'' और बाल मन की राहें में' सरदी आई'
ReplyDeleteदिल को छू लेनेवाली बहुत ही मार्मिक रचना...
ReplyDeleteमां का प्यार..कितना प्यारा होता है...कभी कभी मां होने पर गर्व हो आता है ... बहुत सुन्दर कविता
ReplyDeleteप्रेम की बारिश करती दिल के करीब
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत !
ReplyDeleteनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
new post हाइगा -जानवर
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना काश बेटी को कोख में दफन (दफ्न )करने वाले सोच पाते सम्बन्धों की इस गर्माहट को।
मार्मिक रचना.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , हृदय प्रभान्वित रचना आदरणीय धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: जानिये कैसे करें फेसबुक व जीमेल रिमोट लॉग आउट
very nice !
ReplyDeleteहमेशा की तरह दिल को छूने वाली कविता
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-12-2013) "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1461 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
दिल के साथ आँखे भी भीग गयीं उपासना जी | बहुत बहुत बधाई इस दिल को छू लेने वाली रचना के लिए
ReplyDeleteऑंखें नम करती बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteपोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
dil ko chu gayi ye rachna....maa ka pyar aisa hi hota hai...jag say nayara...sabse pyara
ReplyDeletebahut hi marmik -- khubsurat bhi....umda rachna
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