- धमाकों की दहशत से मची
अफरातफरी .....
कोई गिरा ,
कोई गिर कर उठा ,
लडखडाता हुआ
फिर से चल पड़ा
और कोई दुनिया से ही उठ
गया ....
हर कोई दूर बैठे किसी
अपने के लिए
फिक्रमंद था....
किसी ने कविता लिखी ,
किसी ने नेताओं को ,
तो किसी ने भ्रष्टाचार को ही
कोस डाला .....
किसी ने कहा इस देश का
कुछ नहीं हो सकता ....
किसी ने टीवी चेनल
पर मरने वालों का स्कोर
देख ,
कुछ सच्ची ,
कुछ अनमनी सी
आह भर कर चेनल बदल
दिया .....
चलो कोई मूवी ही
देख ले ....
ऐसा तो यहाँ
होता ही रहता है ....
धमाकों के शोर से
जागी -उनींदी
जनता फिर से सो गयी
शायद और बड़े धमाके के इंतज़ार में....
Saturday 23 February 2013
धमाकों की दहशत
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समायिक उम्दा अभिव्यक्ति,,,,बधाई...
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteUpasana Ji, sundar aur satik abhivykti
ReplyDeleteदुखद घटना पर अच्छे विचार :(
ReplyDeleteजिंदगी तो चलती रहती है लेकिन इस तरह के हादसे दर्द दे जाते हैं ..........
ReplyDeleteअब तो धमाके भी रोज़मर्रा की घटना हो गए हैं ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteदर्द को बहुत ही सटीक शब्दों में अभिव्यक्त किया है....
ReplyDeletedard hi dard
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक
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