ये नीला रंग
दहशत देता है मुझको
हटा लो
इसे मेरी नज़रों से
ये नीला रंग
मेरे रक्त को
बहती हुई रगों को
ज़मा सा जाता है
बुझदिल बनता जाता है
खुला विस्तृत
ये नील गगन
और
इसका नीला रंग
चुभता है मुझे
चुंधिया जाता है मेरी नज़रें ...
आखिर कब तक रखूं
बंद आँखे
ढांप क्यूँ नहीं लेता
इसे कोई बादल का टुकड़ा
मगर
कुछ दिन के बादल
और फिर से
धमकाता - गरियाता
नीला - गगन ...
इस नीले रंग की दहशत में
फीके पड़ जाते हैं
धनक के सात रंग ,
फीके पड़ते रंगों में
एक ही रंग उभरता है
नीला रंग ...
इस नीले रंग से
नफरत की हदों से भी आगे
नफरत है मुझे
हटा दो मेरी नज़रों से इसे ...
दहशत देता है मुझको
हटा लो
इसे मेरी नज़रों से
ये नीला रंग
मेरे रक्त को
बहती हुई रगों को
ज़मा सा जाता है
बुझदिल बनता जाता है
खुला विस्तृत
ये नील गगन
और
इसका नीला रंग
चुभता है मुझे
चुंधिया जाता है मेरी नज़रें ...
आखिर कब तक रखूं
बंद आँखे
ढांप क्यूँ नहीं लेता
इसे कोई बादल का टुकड़ा
मगर
कुछ दिन के बादल
और फिर से
धमकाता - गरियाता
नीला - गगन ...
इस नीले रंग की दहशत में
फीके पड़ जाते हैं
धनक के सात रंग ,
फीके पड़ते रंगों में
एक ही रंग उभरता है
नीला रंग ...
इस नीले रंग से
नफरत की हदों से भी आगे
नफरत है मुझे
हटा दो मेरी नज़रों से इसे ...
उपासना जी....
ReplyDeleteकाफी उम्दा रचना....बधाई...
नयी रचना
"ज़िंदगी का नज़रिया"
आभार
बहुत ही सुन्दर रचना ................
ReplyDeleteअपने भावों को ख़ूबसूरती से प्रस्तुति करती सुंदर रचना...!
ReplyDeleteRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteनफरत सभी रंगों पर भारी है उसका कोई रंग नहीं होता ...
ReplyDeleteएक गम्भीर रचना
बहुत खूब सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteये नीला रंग तो वैसे भी मिथ्या है ... माया है .. जिसको ज्झेलना होता है उम्र भर ,...
ReplyDeleteGood readingg this post
ReplyDelete