Friday, 27 December 2013

ये नीला रंग दहशत देता है मुझको

ये नीला रंग
दहशत देता है मुझको
हटा लो
इसे मेरी नज़रों से

ये नीला रंग
मेरे रक्त को
बहती हुई रगों को
ज़मा सा  जाता है
बुझदिल बनता जाता है

खुला विस्तृत
ये नील गगन
और
इसका नीला रंग
चुभता है मुझे
चुंधिया जाता है मेरी नज़रें ...

आखिर कब तक रखूं
बंद आँखे
ढांप क्यूँ नहीं लेता
इसे कोई बादल का टुकड़ा
मगर
कुछ दिन के बादल
और फिर से
धमकाता - गरियाता
नीला - गगन ...

इस नीले रंग की दहशत में
फीके पड़ जाते हैं
धनक के सात रंग ,
फीके पड़ते रंगों में
एक ही रंग उभरता है
नीला रंग ...

इस  नीले  रंग से
नफरत की  हदों से भी आगे
नफरत है मुझे
हटा दो मेरी नज़रों से इसे ...





8 comments:

  1. उपासना जी....
    काफी उम्दा रचना....बधाई...
    नयी रचना
    "ज़िंदगी का नज़रिया"
    आभार

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना ................

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  3. अपने भावों को ख़ूबसूरती से प्रस्तुति करती सुंदर रचना...!
    Recent post -: सूनापन कितना खलता है.

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  4. आपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन मिर्ज़ा गालिब की २१६ वीं जयंती पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  5. नफरत सभी रंगों पर भारी है उसका कोई रंग नहीं होता ...
    एक गम्भीर रचना

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  6. बहुत खूब सुन्दर रचना ..

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  7. ये नीला रंग तो वैसे भी मिथ्या है ... माया है .. जिसको ज्झेलना होता है उम्र भर ,...

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