Sunday, 22 December 2013

स्कूटर पर जाती महिला



स्कूटर पर जाती महिला
का सड़क से गुज़रना  हो
या  गुज़रना हो
काँटों भरी संकड़ी गली से ,
दोनों ही बातें
एक जैसी ही तो है।

लालबत्ती पर रुके स्कूटर पर
बैठी महिला के
स्कूटर के ब्रांड को नहीं देखता
कोई भी ...

देखा जाता है तो
महिला का फिगर
ऊपर से नीचे तक
और बरसा  दिए जाते हैं फिर
अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ..

काँटों की  गली से गुजरना
इतना मुश्किल नहीं है
जितना मुश्किल है
स्कूटर से गुजरना ...

कांटे  केवल देह को ही छीलते है
मगर
हृदय तक बिंध जाते है
अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ...





11 comments:

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  2. ek dum sach! Bhut sundar
    Vinnie

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  3. नमस्ते! आपकी यह कविता हृदय को छू जाती है. और यही कडवा सच है. मै पूरी तरह आपकी बात से सहमत हुं. बदलते समय के अनुसार लोगों की सोच भी बदलने कि जरुरत है, और इसकी शुरुआत हम पुरुषो से हि होनी चाहिए.

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  4. बहुत सुन्दर स्त्री की मनोदश को सुन्दरत से प्रकट किया है ..

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  5. क्या बात वर्तमान परिपेक्ष मे एकदम सटीक बैठती आपकी कविता
    कभी पधारिए हमारे ब्लॉग पर भी.....
    नयी रचना
    "फ़लक की एक्सरे प्लेट"
    आभार

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  6. एक सत्य ऐसा जो कोई कहता नही परन्तु जानता जरुर हैं

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  7. न जाने ये बदलाव कब आएगा ...
    आज के सन्दर्भ में सटीक अभिव्यक्ति ...

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  8. आज का कटु सत्य...

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