स्कूटर पर जाती महिला
का सड़क से गुज़रना हो
या गुज़रना हो
काँटों भरी संकड़ी गली से ,
दोनों ही बातें
एक जैसी ही तो है।
लालबत्ती पर रुके स्कूटर पर
बैठी महिला के
स्कूटर के ब्रांड को नहीं देखता
कोई भी ...
देखा जाता है तो
महिला का फिगर
ऊपर से नीचे तक
और बरसा दिए जाते हैं फिर
अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ..
काँटों की गली से गुजरना
इतना मुश्किल नहीं है
जितना मुश्किल है
स्कूटर से गुजरना ...
कांटे केवल देह को ही छीलते है
मगर
हृदय तक बिंध जाते है
अश्लील नज़रों के जहरीले कांटे ...
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ReplyDeleteek dum sach! Bhut sundar
ReplyDeleteVinnie
नमस्ते! आपकी यह कविता हृदय को छू जाती है. और यही कडवा सच है. मै पूरी तरह आपकी बात से सहमत हुं. बदलते समय के अनुसार लोगों की सोच भी बदलने कि जरुरत है, और इसकी शुरुआत हम पुरुषो से हि होनी चाहिए.
ReplyDeletesachchi bat hai
ReplyDeleteSateek Baat...Sach Baat....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर स्त्री की मनोदश को सुन्दरत से प्रकट किया है ..
ReplyDeleteसच कहती रचना ...!
ReplyDelete=======================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
क्या बात वर्तमान परिपेक्ष मे एकदम सटीक बैठती आपकी कविता
ReplyDeleteकभी पधारिए हमारे ब्लॉग पर भी.....
नयी रचना
"फ़लक की एक्सरे प्लेट"
आभार
एक सत्य ऐसा जो कोई कहता नही परन्तु जानता जरुर हैं
ReplyDeleteन जाने ये बदलाव कब आएगा ...
ReplyDeleteआज के सन्दर्भ में सटीक अभिव्यक्ति ...
आज का कटु सत्य...
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