Sunday, 15 December 2013

तुम बिन सब सूना -सूना ...


तुम बिन कौन सजन अब मेरा 
 जैसे  फूल सूरजमुखी सा 
मुरझाया अब मन मेरा भी 
घर -आँगन और मन का कोना 
तुम बिन सब सूना -सूना 

तुम बिन कौन सजन अब मेरा 
मद्धम हुआ जैसे चाँद गगन में 
अंधियारे में खोया 
अब मन मेरा भी 
घर -आँगन और मन का कोना 
तुम बिन सब सूना -सूना 


गए परदेस जब से तुम साजन 
भर आते नयन पल -पल 
पल -छिन तुम्हारी डगर निहारूं 
घर -आँगन और मन का कोना 
तुम बिन सब सूना -सूना 

एक बार तो मुड़ कर देखा होता 
जैसे कुम्हलाई सी लता 
 व्याकुल अब मन मेरा भी
घर -आँगन और मन का कोना 
तुम बिन सब सूना -सूना 

तुम बिन कौन सजन अब मेरा 
अब तो घर आ जाओ सजन 

10 comments:

  1. बहुत ही उम्दा व बेहतरीन रचना , आ० श्री उपासना जी धन्यवाद
    नया प्रकाशन -: घरेलू उपचार ( नुस्खे ) भाग - ६

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  2. bahut sundar prastuti......

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  3. सुन्दर रचना सखी ........:)

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  4. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/१२/१३को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है ------यहाँ भी आयें --वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )
    Rajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR -

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  5. बहुत सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति
    नई पोस्ट चंदा मामा
    नई पोस्ट विरोध

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  6. बेहद खूबसूरत रचना

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  7. सुन्दर भावनाओं का संचार करती सुन्दर रचना

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