तुम बिन कौन सजन अब मेरा
जैसे फूल सूरजमुखी सा
मुरझाया अब मन मेरा भी
घर -आँगन और मन का कोना
तुम बिन सब सूना -सूना
तुम बिन कौन सजन अब मेरा
मद्धम हुआ जैसे चाँद गगन में
अंधियारे में खोया
अब मन मेरा भी
घर -आँगन और मन का कोना
तुम बिन सब सूना -सूना
गए परदेस जब से तुम साजन
भर आते नयन पल -पल
पल -छिन तुम्हारी डगर निहारूं
घर -आँगन और मन का कोना
तुम बिन सब सूना -सूना
एक बार तो मुड़ कर देखा होता
जैसे कुम्हलाई सी लता
व्याकुल अब मन मेरा भी
घर -आँगन और मन का कोना
तुम बिन सब सूना -सूना
तुम बिन कौन सजन अब मेरा
अब तो घर आ जाओ सजन
बहुत ही उम्दा व बेहतरीन रचना , आ० श्री उपासना जी धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: घरेलू उपचार ( नुस्खे ) भाग - ६
bahut sundar prastuti......
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर रचना सखी ........:)
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १७/१२/१३को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है ------यहाँ भी आयें --वार्षिक रिपोर्ट (लघु कथा )
ReplyDeleteRajesh Kumari at HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR -
बहुत सुन्दर..
ReplyDeletebahut hi sundar bhav............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनई पोस्ट चंदा मामा
नई पोस्ट विरोध
बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुन्दर भावनाओं का संचार करती सुन्दर रचना
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