भर कर थाली
छप्पन भोग की ,
कब से रही पुकार तुम्हें
आओ कान्हा भोग लगाओ
सुनाई नहीं देता क्या
एक बार में ही तुमको !
सारा काम -काज मैं छोड़ कर बैठी
आओ कान्हा भोग लगाओ
मेरे बालक भी हैं भूखे बैठे ,
प्रेम पुकार को करते अनसुनी
तुम कहाँ छुपे हो बैठे
आओ कान्हा भोग लगाओ
अबकी बेर है आखिरी बारी
फिर न तुमको पुकारूंगी
नहीं आओगे फिर तुम जानो ,
लाठी मेरे पास पड़ी है
कब से रही पुकार तुम्हें
आओ कान्हा भोग लगाओ
बहुत सुन्दर भाव !
ReplyDeleteनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)
बहुत ही उम्दा,प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: एक बूँद ओस की.
कोमल भावो की
ReplyDeleteबेहतरीन........