जब पीछे मुड़ कर
देखती हूँ
तो सोचती हूँ ,मेरा जीवन
जैसे
एक ऐसा हरा भरा दरख्त
जिसकी छाँव में कोई बैठा ही नहीं …
माली ने जिसे एक आँगन
से दूसरे आँगन में
एक मुरझाये
दरख्त के सामने रोप दिया …
माली ने पानी भी दिया तो अहसान
की नज़र से ,
और मैं अहसान को ही प्यार समझती रही ,
दरख्त ने जड़ फैलाई
सहमे -सहमे से हुए ...
आँगन में
दो नन्हे से प्यारे फूलों को
देखा जब ममता की तलाश में
झुलसते ,
अपनी डालियों से ममता की
घनी छाँव में लेना भी चाहा
बेरहमी से मेरी टहनिया ही काट डाली ...
नोच डाला
माली ने मुझ पर लगे
फूलों को भी बेरहमी से ,
माली कभी मेरी छाँव में
सुस्ताया भी
नज़र में उसके वही मुरझाया
दरख्त ही रहा ….
मैं सोचती हूँ
माँ के साथ ममता
का शब्द ही जुड़ता है ,
ये सोतैली का शब्द किसने जोड़ा...
देखती हूँ
तो सोचती हूँ ,मेरा जीवन
जैसे
एक ऐसा हरा भरा दरख्त
जिसकी छाँव में कोई बैठा ही नहीं …
माली ने जिसे एक आँगन
से दूसरे आँगन में
एक मुरझाये
दरख्त के सामने रोप दिया …
माली ने पानी भी दिया तो अहसान
की नज़र से ,
और मैं अहसान को ही प्यार समझती रही ,
दरख्त ने जड़ फैलाई
सहमे -सहमे से हुए ...
आँगन में
दो नन्हे से प्यारे फूलों को
देखा जब ममता की तलाश में
झुलसते ,
अपनी डालियों से ममता की
घनी छाँव में लेना भी चाहा
बेरहमी से मेरी टहनिया ही काट डाली ...
नोच डाला
माली ने मुझ पर लगे
फूलों को भी बेरहमी से ,
माली कभी मेरी छाँव में
सुस्ताया भी
नज़र में उसके वही मुरझाया
दरख्त ही रहा ….
मैं सोचती हूँ
माँ के साथ ममता
का शब्द ही जुड़ता है ,
ये सोतैली का शब्द किसने जोड़ा...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (07-10-2013) नवरात्र गुज़ारिश : चर्चामंच 1391 में "मयंक का कोना" पर भी है!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेह्तरीन अभिव्यक्ति!!शुभकामनायें.
ReplyDeleteउम्दा
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteबहु सुन्दर अभिव्यक्ति -
ReplyDeletelatest post: कुछ एह्सासें !
नई पोस्ट साधू या शैतान
कुछ कैकेयी जैसी माताओं ने जुड़वा दिया !
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति !