रोज़ चाँद को निहारना
उसका इंतजार करना
जैसे तुम्हारे
आने की ही राह ताकना ...
जिस दिन
चाँद नहीं आता
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
उस दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही ...
तुम भी चाँद की तरह ही तो हो
ना मालूम ,
मैं
चाँद की राह ताकती हूँ या
तुम्हारी ,
चंद्रमा की बढती-घटती कलाओं के साथ
झूलती रहती हूँ
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
जिस राह से तुम कभी नहीं आओगे ...
चाँद तो अमावस के बाद आता है
और तुम !
शायद हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे
फिर भी चाँद के साथ
इंतजार तो करती ही हूँ ....
उसका इंतजार करना
जैसे तुम्हारे
आने की ही राह ताकना ...
जिस दिन
चाँद नहीं आता
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
उस दिन ,
मालूम है यहाँ नहीं तो
कहीं न कहीं तो निकला ही होगा
चाँद ,
दुनिया का कोई तो कोना
उसकी चांदनी से रोशन तो होगा ही ...
तुम भी चाँद की तरह ही तो हो
ना मालूम ,
मैं
चाँद की राह ताकती हूँ या
तुम्हारी ,
चंद्रमा की बढती-घटती कलाओं के साथ
झूलती रहती हूँ
आशा -निराशा का हिंडोला ,
फिर भी वो दिशा निहारती हूँ
जिस राह से तुम कभी नहीं आओगे ...
चाँद तो अमावस के बाद आता है
और तुम !
शायद हाँ ?
पर शायद नहीं ही आओगे
फिर भी चाँद के साथ
इंतजार तो करती ही हूँ ....
ati samvwdansheel rachna, bahut sundar
ReplyDeleteभाव में डूबी अति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteSunder Panktiyan....
ReplyDeletechand ke saath intzaaar :) sundar !!
ReplyDeleteआपकी इस रचना को निविया की नजर से "http://hindibloggerscaupala.blogspot.com/" दिन शुक्रवार में शामिल किया गया .कृपया अवलोकनार्थ पधारे
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeletebadhiya ...vo jameen ka chand hai....
ReplyDeleteसुंदर भाव, कोमल अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बढिया..सुन्दर रचना...
ReplyDelete...........सुन्दर रचना ::))
ReplyDelete