पूजा की थाली में फूल ,
रोली-मोली ,
धूप-दीप ,
दूध ,जल
और ठन से
गिराया एक सिक्का !
चल पड़ी मंदिर को ...
बस एक सिक्का !
उसने
धीरे से झाँका ,
अरे !
भगवान तो
भगवान तो
भावना का भूखा है
उसे माया का क्या ?
वो फिर बोली ,
और पुजारी ?
और पुजारी ?
उसका क्या ?
मैं
मैं
बस आँखे तरेर कर
चल पड़ी ...
शिव लिंग पर दूध
की गिरती धार को देख ,
उसने धीरे से कोहनी मार
मंदिर के बाहर ,भूखे
बच्चे की ओर
ध्यान दिलाया ,
ध्यान दिलाया ,
मै तो मगन थी लेकिन ,
बहता हुआ दूध ,
बच्चे की मायूस
आँखों को अनदेखा किया ...
घर आकर छोटू को
सूखी रोटियां और
मेरी प्यारी डायना को
जो मेरे पीछे पूंछ
हिला रही थी ,
अच्छा सा, महंगा
सा खाना दिया था
कि वो फिर कराहती
सी मेरे सामने खड़ी हो गयी ,
मैंने फिर मुहं फेर लिया
मैंने फिर मुहं फेर लिया
एक भव्य संस्था में
भारी चंदे की रकम
और
और
गर्वीला फोटो खिंचवा
कर बाहर निकली
नज़र पड़ी सामने की
नज़र पड़ी सामने की
कोई अपनी
बारिश में टूटी झोंपड़ी
की छत को ठीक कर
रहा था ...
अब तक वो घायल
हो चुकी थी
सड़क पर गिर पड़ी मेरी अंतरात्मा ...
ओह
ओह
ये मेरी अंतरात्मा भी न
पीछे ही पड़ी रहती है ,
मैं,
उसे अपनी गाड़ी से कुचल
पीछे ही पड़ी रहती है ,
मैं,
उसे अपनी गाड़ी से कुचल
कर आगे बढ़ गयी ...
सच ..कैसी विडंबना है ?
ReplyDeleteमार्मिक पंक्तियाँ
सलाम ……बहुत ही भावपूर्ण रचना अल्टीमेट
ReplyDeleteumda bhav abhivyakti
ReplyDeleteअत्यंत मार्मिक और भावाप्लावित रचना
ReplyDeleteबेहतरीन भावअभिव्यक्ति के साथ सुंदर रचना !
ReplyDeleteRECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
मार्मिक पंक्तियाँ.
ReplyDeleteनई पोस्ट : धन का देवता या रक्षक
बहुत ही मार्मिक रचना...
ReplyDeleteऔर बेहतरीन भी....
भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआइये, कीजिये:- "झारखण्ड की सैर"
इस पोस्ट की चर्चा आज सोमवार, दिनांक : 21/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -31पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....नीरज पाल।
कडुवे सच को लिखा है ... कौन सी दिशा में जा रहा है समाज .. आज की सोच ...
ReplyDeletewah
ReplyDeleteसोंचने को मजबूर करती रचना ...
ReplyDeleteबधाई आपको !
बहुत ही मार्मिक रचना.
ReplyDelete